बिखरे सितारे:१० बिटिया का तोहफा.
(पूर्व भाग :वो दिनभी आया जब बिटिया को स्कूल जाना था....उन्हीं दिनों बिटिया ने अनजाने ही अपनी माँ को एक यादगार तोहफा दिया...जिसकी क़द्र बरसों बाद पूजा को हुई...उस का एहसास हुआ,की, वो तोहफा कितना नायाब था...अब आगे पढ़ें)
केतकी ३ साल की हुई तो स्कूल जाने लग गयी. एक दिन स्कूल से फोन आया की, वापसी पे स्कूल बस बिना उसे लिए निकल गयी है...पूजा जल्दी जल्दी स्कूल पहुँची...बच्ची को दफ्तर में बिठाया गया था..उसके गाल पे एक आँसू लटका हुआ पूजा को नज़र आया...उसने धीरेसे उसे अपनी तर्जनी से पोंछ दिया और बच्ची को गले लगा लिया..
माँ ने वो एक बूँद पोंछी तो बिटिया बोल उठी: " मुझे डर लगा,तुम्हें आने में देर होगी,तो, पता नही कहीँ से ये पानी मेरे गालपे आ गया..!"
बरसों बाद जब पूजा को ये वाक़या याद आया,तो लगा, काश वो उस एक बूँद को मोती में तब्दील कर एक डिबियामे संजो के रख सकती...बिटिया से मिला वो एक बेहतरीन तोहफा था...क्या हालात हुए,जो पूजा को ऐसा महसूस हुआ? अभी तो उस तक आने में समय है...इंतज़ार करना होगा...!
दिन बीतते गए...गौरव के तबादलों के साथ बच्चों के स्कूल बदलते गए...पूजा में हर किस्म का हुनर था..उसने कभी पाक कला के वर्ग लिए तो कभी बागवानी सिखाई...कमाने लगी तो उसमे थोडा आत्म विश्वास जागा..बच्चों का भविष्य, उनकी पढ़ाई...खासकर बिटियाकी, मद्देनज़र रखते हुए, उसने पैसों की बचत करना शुरू कर दी...हर महीने वो थोडा-सा सोना खरीद के रख लेती...गुज़रते वक़्त के साथ पूजा का यह क़दम बेहतरीन साबित हुआ..
एक और बात पूजा को ता-उम्र याद रहेगी...बिटिया ५/६ सालकी थी...बहुत तेज़ बुखार से बीमार पडी..रोज़ सुबह शाम इंजेक्शन लगते...जब डॉक्टर आते तो वो उनसे कहती,: " अंकल, माँ को बोलो दूसरी तरफ देखे..उसे बोलो, मुझे बिलकुल दर्द नही होता..माँ! आँखें बंद करो या दरवाज़े के बाहर देखो तो..."
पूजा की आँख भर आती...!
जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलाती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगातीं ...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...
और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए...
क्रमश:
केतकी ३ साल की हुई तो स्कूल जाने लग गयी. एक दिन स्कूल से फोन आया की, वापसी पे स्कूल बस बिना उसे लिए निकल गयी है...पूजा जल्दी जल्दी स्कूल पहुँची...बच्ची को दफ्तर में बिठाया गया था..उसके गाल पे एक आँसू लटका हुआ पूजा को नज़र आया...उसने धीरेसे उसे अपनी तर्जनी से पोंछ दिया और बच्ची को गले लगा लिया..
माँ ने वो एक बूँद पोंछी तो बिटिया बोल उठी: " मुझे डर लगा,तुम्हें आने में देर होगी,तो, पता नही कहीँ से ये पानी मेरे गालपे आ गया..!"
बरसों बाद जब पूजा को ये वाक़या याद आया,तो लगा, काश वो उस एक बूँद को मोती में तब्दील कर एक डिबियामे संजो के रख सकती...बिटिया से मिला वो एक बेहतरीन तोहफा था...क्या हालात हुए,जो पूजा को ऐसा महसूस हुआ? अभी तो उस तक आने में समय है...इंतज़ार करना होगा...!
दिन बीतते गए...गौरव के तबादलों के साथ बच्चों के स्कूल बदलते गए...पूजा में हर किस्म का हुनर था..उसने कभी पाक कला के वर्ग लिए तो कभी बागवानी सिखाई...कमाने लगी तो उसमे थोडा आत्म विश्वास जागा..बच्चों का भविष्य, उनकी पढ़ाई...खासकर बिटियाकी, मद्देनज़र रखते हुए, उसने पैसों की बचत करना शुरू कर दी...हर महीने वो थोडा-सा सोना खरीद के रख लेती...गुज़रते वक़्त के साथ पूजा का यह क़दम बेहतरीन साबित हुआ..
एक और बात पूजा को ता-उम्र याद रहेगी...बिटिया ५/६ सालकी थी...बहुत तेज़ बुखार से बीमार पडी..रोज़ सुबह शाम इंजेक्शन लगते...जब डॉक्टर आते तो वो उनसे कहती,: " अंकल, माँ को बोलो दूसरी तरफ देखे..उसे बोलो, मुझे बिलकुल दर्द नही होता..माँ! आँखें बंद करो या दरवाज़े के बाहर देखो तो..."
पूजा की आँख भर आती...!
जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलाती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगातीं ...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...
और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए...
क्रमश:
6 टिप्पणियां:
केतकी बड़ी संवेदनशील बच्ची लगी !
वह नायाब निबंध जीवन भर की थाति की तरह है...
बेहतर...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
bahut badhiya...ketaki kaa paatra bahut hi rochak our samvedansheel hai.
केतकी का यह निबंध पूजा के जिंदगी में कितनी अहमियत रखता था ये तो कोी माँ ही जान सकती है ।
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