जो जीवन अनगिनत घटनाओं से भरा हुआ हो...उन लम्हों को कैसे चुनूँ?? एक माला पिरोना चाहती हूँ, उनमे कौन से मोती शामिल करूँ..कौनसे छोड़ दूँ...?
तूफानों की शुरुआत तो शायद उस नन्हीं जान के इस दुनिया में आने के पहलेही हो चुकी थी..अब तक तो वह अपनी माँ की बाहोँ में..अपने दादा दादी की छत्र में महफूज़ थी...उसे इन तूफानों का मतलब तो समझ नही आता था..थपेडे चाहे लगते हों...
कोई, किसी दूसरे को, चाहे वो अपनी औलाद ही क्यों न हो, कितना महफूज़ रख सकता है...और कबतक? ये सवाल मेरे मनमे जब जब उभरेगा, शायद पाठकों के मन में भी उभरेगा...
तमन्ना की, ..जैसे कि, उसके दादा-दादी, माँ पिता कभी बुलाया करते, उसी गाँव में, पढाई शुरू कर दी गयी..एक मास्टर जी गाँव से घर आते और उसे प्रादेशिक भाषा में पढाते......तीन साल के बाद ये पढाई शुरू हुई..जब पूजा-तमन्ना, अपने माँ पिता के साथ निज़ामाबाद से लौट आयी...
उसे तो वो रटना रटाना क़तई नही भाता..लेकिन और कोई तरीक़ा तो नही था...फिर जब वो छ: सालकी हुई तो पास के एक छोटे-से शहर की पाठशाला में उसका दाखिला कराया गया..अन्य बच्चे जैसे, पाठशाला के पहले कुछ दिन रोते हैं, येभी खूब रोई...उसके दादा या पिता, स्कूल के बाद उसे लेने आते..गर देर हो जाती,तो इसका दिल बैठ ही जाता..उसके गुरूजी बड़े ही अच्छे थे..बेचारे उसको खूब मानते रहते..
अबतक एक और बच्ची परिवार में आ गयी थी..उसकी छोटी बहन...वह भी दादा दादी की बेहद लाडली थी..पर पूजा की बात ही उन दिनों अलग थी..उस परिवारकी पहली पोती...! शैतानी भी कर जाती...अपनी बहन के आगे,वो स्वयं को खूब बड़ा समझती....!
जब वह चौथे वर्ग में आ गयी,तो वहाँ उसके गुरूजी बड़े ही बदमिज़ाज निकले...उन्हें बच्चों को जाती परसे पुकारने की आदत थी...इतनी छोटी थी पूजा..लेकिन उसको उन दिनों भी ये बात बड़ी ही अखरती...
एक दिन गुरूजी ने एकेक बच्चे को खड़ा करके बताना शुरू किया," हाँ..तो तुम कल दोपहर में सड़क पे क्या कर रहे थे? मैंने देखा तुम्हें!"
वो बच्चा,अपनी गर्दन लटकाए खड़ा रहा..किसी बच्चे ने ये नही कहा कि, मै तो वहाँ था ही नही या थी ही नही...पूजा को भी खड़ा किया गया..और गुरूजी बोले," हाँ..तो तुम्हें मैंने तुम्हारे दादा के साथ दुकान में जाते देखा..तुम क्यों उनको परेशान कर रही थी? अपने बड़ों ऐसे परेशान करते हैं?"
सारा वर्ग ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा..अन्य बच्चों को डांट मिल रही देख,अक्सर बच्चे मज़ा लेते हैं...! पूजा को बेहद अपमानित महसूस हुआ...!
वह हैरान भी हो गयी....! उसने कहा,
"लेकिन कल तो मै पूरा दिन घर पे थी.....कल तो इतवार था...! मै तो कहीँ नही गयी..और दुकान में तो मुझे दादा ले जाते हैं..मै नही कहती ले जाने को...!"
बस..इतना कहना था,कि, गुरूजी उसपे बरस पड़े," मै झूठ बोल रहा हूँ? तू सही बोल रही है? ये मजाल तेरी....? तुझे घर पे ऐसा सिखाया है? कि गुरूजी का अपमान करे..?चल,निकल वर्ग के बाहर...जा खड़ी हो जा, उस खंभे के पास..धूप में.."
अप्रैल माह की चिलचिलाती धूप थी..और पूजा, अपने आँसू चुपचाप बहाते हुए, धूप में जाके खड़ी हो गयी...उसे दोपहर का खाना खाने की इजाज़त भी नही मिली...उसे अपने तीसरे वर्ग के गुरूजी बड़े याद आए...वो कितना प्यार से समझाया करते थे..जब वो कुछ गलती कर जाती...और पूरा वर्ग उसपे हँस पड़ता,तो गुरूजी पूरे वर्ग को डांट के चुप करते..वैसे भी, पूजा सुंदर थी, नाज़ुक थी..और कई लड़कियाँ उसपे जलती भी थीं..
बच्ची ने घर जाके यह बात अपने दादा को बताई..दादा तो सत्य के पुजारी थे..उन्हों ने तुंरत इस घटना का ब्योरा मुख्याध्यापक को दे दिया...उसके बात तो गुरूजी ने उसपे और अधिक खुन्नस पकड़ ली...उसके दिमाग़ से बरसों ये बात निकल नही पायी,कि, आख़िर वो गुरूजी उससे झूठ क्यों बुलवाना चाहते थे?
क्रमश:
शनिवार, 3 जुलाई 2010
बिखरे सितारे ! ५) और दिन गुज़रते रहे...
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8 टिप्पणियां:
गाँवों की पाठशाला का सटीक चित्रण... कई अध्यापक होते भी हैं ऐसे... किंतु पूजा के मन में उठने वाले बाल सुलभ प्रश्नों का उत्तर क्या उसे मिल पाय... अगली कड़ी में यही देखेंगे हम लोग!!
अब बढ़िया किया..छोटे छोटे पैरा बना दिये तो पढ़ना सरल हुआ. बधाई.
रोचक कडी रही। धन्यवाद अगली कडी का इन्तजार।
aage kee kadee kee pratiksha...........
bacche kabhee jhoot nahee bolte ye bade hee sikha dete hai by hook ya crook.......
गुरु जी क्या कुंठाग्रस्त नहीं हुआ करते ?
वैसे तो पिछले दो सालो से ब्लाग लिख रहा हू लेकिन लोगो से जुडने और जोडने की तह्जीब और सलीका दोनो मुझ मे नही आया।
शेष फिर (कविताओं का ब्लाग) और खानाबदोश(मेरी फक्कडी का)।
कभी संवेदना मे रची बसी कविता पढने का मन हो तो आप मेरे ब्लाग पर पधार सकती है।
ब्लागिंग के टिप्पणी आदान-प्रदान के शिष्टाचार के मामले मे मै थोडा जाहिल किस्म का इंसान हूं लेकिन आपमे तो बडप्पन है ना...!
डा.अजीत
www.monkvibes.blogspot.com
www.shesh-fir.blogspot.com
कई अध्यापक अपना बडप्पन दिखाने के लिये बच्चों को बिनावजह डांट देते हैं । ये नही सोचते कि इससे वे बच्चों के मन से उतर ही जाते हैं ।
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