(पूजा की माँ ने क्या कहा पूजा से?...अब आगे पढ़ें...)
पूजा अपने आपको हज़ार कामों में व्यस्त रखती...उस समय वो रसोई साफ़ कर रही थी..माँ तभी शहर से लौटी थीं...चुपचाप पूजा के पीछे आके खड़ी हो गयीं....
आहट हुई तो पूजा ने मुड के देखा...माँ बोलीं,
" क्या तुझे 'वो' पसंद है? प्यार है, हैना?"
पूजा: " हाँ...कहा तो था आपको..लेकिन मेरे पसंद आने से क्या फ़र्क़ पड़ता है...ये बात तो एकतरफा है...मुझ में कौन-सा आकर्षण है,जो मै उसे पसंद आ जाऊं...मै तो खामोश बैठी रहती हूँ... "
माँ:" नही...एकतरफा नही है...आग दोनों तरफ़ बराबर है...तेरी खामोशी में भी बेहद कशिश है...शायद तू ख़ुद नही जानती.."
माँ के चेहरे पे एक विलक्षण सुकून और खुशी नज़र आ रही थी...पूजा को अपने कानों पे विश्वास नही हुआ...दंग रह गयी...
पूजा:" आपको कैसे पता?"
माँ: " मै अभी, अभी उससे मिल के आ रही हूँ...इसीलिये शहर गयी थी...तेरे दादी दादा को बता के गयी थी,कि, किसलिए जा रही हूँ.."
माँ, मासूमा, ख़ुद गाडी चला लेती थीं...
पूजा:" तो?"
अब पूजा के गाल कुछ रक्तिम होने लगे थे...माँ ने उसे धीरे से अपने पास खींच लिया और बोलीं,
" उससे मैंने कहा, कि, पूजा किसी से प्यार करती है..और उसे लगता है, वो प्यार एकतरफा है....उसका जवाब था, उससे कहो, ये एकतरफा नही है....वो आज शाम तुझ से मिलने आयेगा...."
एक पल में पूजा की दुनिया बदल गयी...जैसे मुरझाई कली पे ओस पडी हो...वो इसतरह खिल उठी...फिज़ाएँ महकने लगीं...चहकने लगीं...गरमी का मौसम था, लेकिन पूजा के जिस्म को मानो बादे सबा छू गयी...एक सिहरन-सी दे गयी...
माँ के आगे उसकी पलकें लाज के मारे झुक गयीं...कितनी प्यारी माँ थी...जिसने लडकी के मन को जाना और उसकी उदासी ख़त्म कर दी...अपने सास ससुर को विश्वास में ले, स्वयं लड़के के पास चली गयी...ना जात ना पात...घर में पूजा की खुशी की हरेक को चिंता थी...
जब तक माँ शहर से लौटी नही, तब तलक दादा दादी दिल थामे बैठे रहे...सबसे पहले माँ ने ये ख़बर उन्हें सुनायी...उनकी जान में जान आ गयी...गर ब्याह होगा तो बच्ची...उनकी आखों का सितारा...वो सुबह का तारा ...आँखों से बेहद दूर हो जायेगा...लेकिन बिखर तो नही जाएगा...
अब सभी को शाम का इंतज़ार था...पूजा चुपके से अन्दर कमरे में जा आईने के आगे खड़ी हो गयी...आज शाम को बिना सिंगार सुंदर दिखना था..क्योंकि सिंगार तो उसने कभी किया ही नही था..कभी बालों में फूल के अलावा अन्य कुछ नही...
और ऐसा बेसब्र इंतज़ार भी कभी किसीका नही किया था...हाँ! जब, जब 'वो' घर पे आनेवाला होता, उसके मन में मिलने की चाह ज़रूर जागृत होती..लेकिन आज...! आज की शाम निराली होगी...आज क्या होगा? 'वो' क्या कहेगा? क्या उसे छुएगा ?? उई माँ...! सोचके उसके कपोलों पे रक्तिमा छा गयी....अपना चेहरा उसने ढँक लिया....
वो शाम उसके जीवन सबसे अधिक यादगार शाम होने वाली थी...आना तो उसने ८ बजे के बाद था....लेकिन उसदिन शुक्ल पक्षका आधा चन्द्रमा आसमान में होने वाला था...रात सितारों जडी की चुनर लेके उसके जिस्म पे पैरहन डाल ने वाली थी...
क्या भविष्य उतना उजला होने वाला था? किसे ख़बर थी? किसे परवाह थी? क़िस्मत की लकीरें कौन पढ़ पाया था?
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26 टिप्पणियां:
क्षमा जी!
कथा का प्रवाह अच्छा चल रहा है।
बधाई!
अच्छा प्रवाह चल रहा है .......कितनी सरल नायिका है --- क्या उसे छुएगा ?? उई माँ...! सोचके उसके कपोलों पे रक्तिमा छा गयी....अपना चेहरा उसने ढँक लिया....
आगे क्या होगा प्रतीक्षा है...
१४वी कड़ी पढने के बाद आज ऐसा लग रहा है दोबारा शुरू से पढना शुरू करुँ| बात ये है कि अभी तक कहानी /उपन्यास की द्रष्टि से पढ़ रहा था अब साहित्य की द्रष्टि से पढ़ा जायेगा |आज जब इस ओर मेरा ध्यान गया तो यह विचार आया ""सितारों जडी रात चूनर लेकर उसके जिस्म पर पैरहन डालने वाली थी ""तथा ""कपोलों पे रक्तिमा छा गई "" और ""फिजायें महकने लगीं चहकने लगीं जिस्म को वादे सबा छू गई एक सिरहन सी दे गई ""और भी "" वो आँखों का सितारा सुबह का तारा ""
.कितनी प्यारी माँ थी...जिसने लडकी के मन को जाना औरउसकी उदासी ख़त्म कर दी...
maa to aisi hi hoti hai..wo dil ki baaten jaan leti hai...
becoming more interesting!! Maa beti ke bhavnaoo ko samajhti hain aur unka samrthan karti hain yeh aur bhi acchi baat hain
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! पता नहीं आख़िर ये हंगामा कौन है! मुझे तो बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि कुछ न करते हुए भी मुझे बदनाम किया जा रहा है और खामखा मुझपर कीचड़ उछाला जा रहा है! मेरी तरफ़ से जो सफाई देनी थी मैंने दे दिया है! अपना नाम बदलकर टिपण्णी वही दे सकता है जो पागल हो या अपना मानसिक संतुलन खो बैठा हो! पता नहीं कैसे कैसे लोग हैं इस दुनिया में जो लोगों को तकलीफ पहुंचाकर उन्हें खुशियाँ मिलती है!
बहुत ख़ूबसूरत कहानी लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! माँ की ममता अपार होती हैं और उनके जैसा दूजा और कोई नहीं होता! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें
कथा रोचक ही होती जा रही है. माँ का मनोविज्ञान अच्छा लगा, बेटी की उदासी कुशलता से दूर कर सकी.
आशा है अब आप स्वस्थ हो गईं होगी.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
everytime i read ur composition, i feel like dipped in emotions and thoughts, another part of amazing story.....keep on...
aaj hi sari kdiya pdhi behd rochk khani aur bdi hi khubsurt shaili hai agli kdi ka besbri se intjar hai .
aapko bhi mai bhut dino bad pdh pai
par pta nhi kuch ghtnao ko chod de to lgta hai jidgiyo me kitni smanta hai .abhar
गज़ब....बहुत ही लाज़वाब....और क्या कहूँ...!!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. सच मानिये पहली बार में ही आपकी कलम का मुरीद हो गया.
कभी मेरे ब्लॉग (meridayari.blogspot.com) पर भी आयें
मुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
बेहद खूबसूरत कहानी..एक एहसास और प्रेम की डोर में पिरो कर आपने बेहतरीन प्रस्तुति दी है इस रचना को..हमने पढ़ा ..पूजा की मनोवृति, उसकी भावनाएँ और एक प्रेम जो पूजा के हृदय में चल रहा है..
बधाई...अब अगले कड़ी का इंतज़ार करूँगा..
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. पूरी कथा पढने में टाइम लगेगा सो सीधे १४वी किश्त पढ़ डाली अब शुरू से पढूंगा..........
NICE ONE!!!!LAGE RAHO.....
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
आपकी टिप्पणी हो या पोस्ट।
इसे माँ शारदे! का आशीष समझकर
बधाई प्रेषित करता हूँ!
padh liya ji..aur bas thagi si hun ..mujhe kehtin hain nistabdh kiya ..mere to shbdon ne hi saath chhod diya...
intezaar hai agli kadi ka...
आना तो उसने ८ बजे के बाद था....लेकिन उसदिन शुक्ल पक्षका आधा चन्द्रमा आसमान में होने वाला था...रात सितारों जडी की चुनर लेके उसके जिस्म पे पैरहन डाल ने वाली थी.......
शब्द बोल रहे हैं जैसे ............ बहुत ही दिलचस्प चल रही है कथा ......... लाजवाब .........
"क़िस्मत की लकीरें कौन पढ़ पाया था? "
क्या फिर कोई अनहोनी होनी है?
Ye jawab "smart Indian" ko de rahee hun...ye stya ghtanayen hain...honee anhonee saath,saath chalengee..gar aap is malika ke pahle do/teen hisse padhen,to ek ehsaas, ek aabhaas milta chala jayega..
maine likha tha," ek aisee jeevanee bayaan ho rahee hai, jisme chand khushiyan aur beshumaar hadse shamil hain.."
Shuruaat kee kadiyan avashy padhen ye iltija hai...kisee behad mahatv poorn maqsad ko maddenazar rakhte hue ye kathan chal raha hai.
इतना प्रवाह और कसाब है आपके लेखन में कि एक सांस में पूरी पोस्ट पढ जाती हूं. अगली कडी का बेसब्र इन्तज़ार कर रही हूं.
अच्छी श्रृंखला चल रही है...
जिज्ञासा बनी रहती है...
katha rochak hone ke saath hi ek patr ki tarah pathak ko jodte chala jata hai .utsaah bhi barabar bana rahata hai .achchha likhati hai .aakhri pankti bahut hi shaandar hai .happy dashhara .
What a story! My heart is, as if, stopped!
What a story! My heart is, as if, stopped!
इश्क की दास्तान है प्यारे
अपनी-अपनी जुबा्न है प्यारे
कुछ पंक्तियां शायरी का गुमान दे गयीं..."रात सितारों जडी की चुनर लेके उसके जिस्म पे पैरहन डाल ने वाली थी"
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