बुधवार, 12 मई 2010

Bikhare sitare:17 जा, उड़ जा रे पँछी..!

( गतांक : ओह! बिटिया को मै हर दिन का ब्यौरा लिखती..एक दिन उसने लिखा," अब बस भी करो माँ!"
मैंने कहा, जीवन में यह पल बार बार आनेवाले नही.." जोभी है,बस यही इक  पल है..कर ले तू पूरी आरज़ू...." कल किसने देखा है? कलकी किसको खबर?
और कितना सच था...आनेवाले कलमे क़िस्मत ने मेरे लिए क्या परोसा था? मुझे कतई अंदाज़ नही था...
अब आगे पढ़ें..)

देखते ही देखते वो दिन भी आ गया ,जब बिटिया राघव के साथ भारत पहुँच गयी..और पंख लगा के दिन उड़ने लगे..उन्हें नए सिरेसे वीसा बनवाना था..वह भागदौड़...राघव  अपने घर जाय उससे पहले उसका सूट सिलना था..नाप देने थे...बिटिया की चोलियाँ सिलनी थी..और मेहंदी..यह सब तीन दिनों के भीतर..

चौथे दिन हम बिटियाके ससुराल पहुँच गए..हमारा इंतज़ाम हमने चंद अतिथि गृह बुक करके किया था..एकेक विधि संपन्न होते,होते ३ दिन तेज़ीसे गुज़र गए..विवाह सपन्न होते  ही मेरे आँसूं बह निकले..मै अपनी माँ के गले लग रो पडी...माँ की आँखों में भी झड़ी लगी हुई थी...बोलीं :" यही तो जगरीती है...तू भी ऐसे ही एक दिन विदा हुई थी..हाँ...फ़र्क़ यह है,की, केतकी सात समंदर पार जा रही है..तू इसी देश में थी..पर फिर भी तेरे लिए मन तरस जाता था.."

बिटियाके साथ हम घर लौटे..अब हमारी ओरसे स्वागत समारोह की तैय्यारी..मेहमानों की व्यवस्था..बिटिया के ससुराल के लोगों की ठहरने की व्यवस्था..स्वागत समारोह के एक दिन पूर्व, राघव और उसका परिवार आदि आ गए..समारोह के ३ रे दिन केतकी और राघव ने अमरीका वापस लौटना था..वो शाम भी आही गयी..

रात की उड़ान थी..गौरव और अमन हवाई अड्डे पे उन्हें बिदा करने जा रहे थे..मै बेहद थकी हुई थी..मुझे सब ने रोक लिया...वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता? दोनों एक बार अन्दर प्रवेश कर लेते ... हमें तो बाहर से ही लौट जाना होता..

गौरव ने आवाज़ लगाई:" चलो सामान नीचे लाने लगो...!"
केतकी की आँखें सूखी थीं...उनकी गाडी निगाहों से परे होने तक मैंने अपने आँसूं रोक रखे..भीगा मन, भीगी आँखें उसे आशीष दे रहीं थीं..जा, उड़ जा रे पँछी..! खुले आसमाँ में उड़ जा..! अपना घोंसला बना ले..अब तो तेरे मेरे क्षितिज भी भिन्न हो गए..जब तेरे आशियाँ को  सुबह की किरने  चूमेंगी, मेरी सूनी-सी शाम रात में तबदील होगी...

माँ तो एक दिन पहले ही जा चुकी थीं..मै अपनी जेठानी के गले लग रो पडी..आए हुए महमान लौटने लगे..और दो तीन दिनों के भीतर घर खाली हो गया..

गौरव के retirement का दिन करीब आ गया..इस घरकी,सजी सजाई  दीवारें खाली होने लगीं.. दरवाज़े खिड़कियाँ बेपर्दा...बंजारों का डेरा उठा..हम तीन माह पूर्व लिए अपने फ्लैट में रहने चले आए..

यह घर भी लग गया..ज़िंदगी में अचानक से एक खालीपन,एक ठहराव महसूस हुआ...मै अपने छंदों में मन  लगाने की कोशिश में जुट गयी..एक कला प्रदर्शनी की..पर अब महसूस हुआ,की,दस साल पूर्व की और अबकी बात फ़र्क़ थी..अब malls बन जाने के कारण लोग, वहाँ जाना अधिक पसंद करते थे..जिन्हों ने मेरी कला तथा डिज़ाइन के तरीके देखे ही नही थे,वो प्रदर्शनी में क्या होगा इसका अंदाज़ नहीं लगा सकते थे..अब मै अपने समय का इस्तेमाल कैसे करूँ? यह परेशानी मेरी थी, लोगों की नही..

गौरव भी बैठे रहना तो पसंद नही कर रहे थे..उन्हें काम मिल गया,लेकिन हमारे शहरसे काफ़ी दूर..अमन भी दूसरे शहर में ही था..बाद में जहाँ गौरव था वहाँ आ गया..

इस घर में मै एकदम अकेली पड़ गयी..तभी माँ को कैंसर होने का निदान हुआ..वो मेरे पास आ गयीं...उनकी आनन् फानन में शस्त्र क्रिया कराई गयी..हम भाई बहनों को सदमा तो बहुत लगा था..कुछ ठीक महसूस करने पर वो अपने घर लौट गयीं..उनकी सेहत देखते हुए मैंने तय कर लिया..मै ऐसा कोई काम शुरू नही करुँगी,जिसे छोड़ ना सकूँ..माँ को किसी भी समय मेरी ज़रुरत महसूस हो सकती थी..और गाँव में,मेरे नहैर में, वैद्यकीय  सुविधाएँ बहुत कम थीं..

बैठे,बैठे एक दिन मैंने किसी नेट वर्क पे अपना वर्क प्रोफाइल डाल दिया...मै जो कुछ करती,वो सब लिखा..और मेरा contact नंबर  भी दिया ....सोचा, गर फ्री lancing का तरीका अपना के काम किया जाय तो ठीक रहेगा..नही पता था,की, मुझे इसके क्या परिणाम भुगतने पड़ेंगे..ख्वाबो-ख़याल में जो नही सोची थी, ऐसी परेशानियों का एक सिलसिला मेरे इंतज़ार में था...

20 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

गतांक से आगे ...बढ़िया संस्मरण लगे......धन्यवाद

Apanatva ने कहा…

agalee kadee ke intzar me dhadkane bad gayee hai.....

bhagyareema ने कहा…

will be waiting for the next post

Tej ने कहा…

agli kadi ka intzaar

दीपक 'मशाल' ने कहा…

शस्त्र की जगह शल्य कर लीजिये. बाकी कहानी हमेशा की तरह अच्छी लगी.

उम्मतें ने कहा…

हमें भावुक कर दिया आपने !

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Har Maa ke liye beti vida karna hamesha hi kashtprad hota hai.. Kabhi kabhi main sochta hun aise kaise har rishte ek pal main paraye ho jate hain.. Par duniya ki yahi reet hai aur es hruday vidarak reet nibhane wali har beti ko mera naman..

Beton se betiyan hamesha apne Maa baap ka jyada dhyan rakhti hain..ye baat aur hai naihar se sasuraal unko jana padta hai..

Jeevan bhar sangharsh kar jab vyakti aapki avastha main pahunchta hai to ye manah sthiti har vyakti ki hoti hai, jab tak ghar main bachche rahte hai, har Maa unme uljhi rahti hai aur jab wo pankh faila ud jaate hain, tab lagta hai ki AB KYA KAREN, KAISE BEETAIGA PAHAD SA DIN, khair, ab to yug badal gaya.. Ab Internet ka jamana hai..beshak aapka shuruati anubhav theek na raha ho par galtian karke hi to manushya seekhta hai..na..

Blog likhen, kavitaon, kahaniyon, kala aadi main ram jaayen, padhen aur likhen..,

Jeevan kathin hai..
Fir bhi jeena hai..
Agar jahar hai..
Fir bhi peena hai..

Amrut peekar ke kya jeena,
jahar bhi peekar, muskana hai..
Har pal khush hokar ke jeena..
Amar yun hi hote jana hai..

Agli kadi ki pratiksha main..

DEEPAK..

vandana gupta ने कहा…

ये दिन तो सबकी ज़िन्दगी मे आता है और इस लम्हे से सबको गुजरना पडता है………………क्या करें रीत ही ऐसी है…………………फिर भी उसकी यादों की खुशबू तो आपके ज़ेहन मे क़ैद है। अगली कडी का इंतज़ार है।

Basanta ने कहा…

As always, I was completely carried away by the narration. Waiting eagerly for the next episode.

arvind ने कहा…

कहानी हमेशा की तरह अच्छी ,बढ़िया संस्मरण ......धन्यवाद

Alpana Verma ने कहा…

'अब तो तेरे मेरे क्षितिज भी भिन्न हो गए..'
सच यही मन की स्थिति रही होगी!
बेहद भावुक क्षण होते हैं ये बेटी के लिए भी माता -पिता के लिए भी !
अब फ्री लांसिंग का काम कैसा चला...और अंतर्जाल पर अपना डिटेल देने के क्या दुष्परिणाम रहे होंगे.!.अगले अंक का इंतज़ार ..

रचना दीक्षित ने कहा…

hamesha ki tarah fir bhavuk karti apki rachana acchi lagi

दीपक 'मशाल' ने कहा…

क्षमा जी पता नहीं कैसे पर ये गड़बड़ कुछ दिनों से चल रही है.. ऐसे ही मैं भी जिन ब्लोग्स को ब्लोगरोल में डाले हूँ उनमे से कई की जानकारी नहीं मिलती. आशा है आप इसे मेरी भूल न समझ माफ़ करेंगीं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मार्मिक संस्मरण!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

though i had not been following your previous article related to this one but i read thru this one completely and it gave me an idea of the earlier ones...

very good!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

यह पढ़कर तो इमोशनल हो गई...

_________________
पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'

रवि कुमार रावतभाटा ने कहा…

बिखरे-बिखरे सितारे...
हमेशा की तरह बेहतर....

शमीम ने कहा…

Kaafee dino baad pad raha hu.Achi prastuti, yah ank acha laga. pichle kuch ank padhunga.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

रोचक संस्मरण ।

गौतम राजऋषि ने कहा…

फिर से अकेली रह गयी है हमारी ट्रेजेडि क्वीन...उफ़्फ़!

और अब क्या होने वाला इस आन-लाइन झमेले से। कहानी कहने की इस कला को सलाम कि हर कड़ी एक अजब सस्पेंस के साथ खत्म होती है।