मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

दीपा 16

( गतांक :मैंने फ़ोन रखा और दूसरी ओर  दीपा का फोन बजा! दोनों ने बड़ी देरतक बातें कीं. बादमे  दीपा ने बड़े इतमिनान से मुझे सारी बातें दोहराके बतायीं . प्रसाद ने उससे वादा किया की अब वो नियम से फ़ोन करेगा...या गर दीपा का फ़ोन होगा तो ज़रूर उठा लेगा...व्यस्त रहा तो बाद में बात कर लेगा! उदास,अस्वस्थ दीपा,अचानक खिल उठी थी!
अब आगे.....)

उस रोज़ के बाद चंद दिन तो प्रसाद के फोन आते रहे...लेकिन कुत्ते की दुम! टेढ़ी सो टेढ़ी!  वो दुबारा गायब हो गया! वजह भी समझ में न आये! पिछली बार तो उसने अति व्यस्तता ये वजह  बताई  थी....साथ ये भी कहा था,की, आइन्दा कितना ही व्यस्त क्यों न हो,कमसे कम एक sms तो ज़रूर भेजेगा .....सारे वादे धरे के धरे रह गए!

ऐसे ही कुछ तीन चार माह गुज़र गए. दीपा अपना समय बिताने face book आदि social network पे जाती रहती...नए,नए दोस्त बनाती रहती और उन से गप लगा लेती...

मै उन दिनों मुंबई में थी. दीपा बार बार मुझ से कह रही थी,की,मै जल्द लौट आऊँ .....उसे बहुत-सी बातें बतानी थी....!उसकी आवाज़ में खुशी झलक रही थी! मुझे बड़ा अच्छा लगा और जिज्ञासा  भी जागृत हो गयी...! मै मुंबई से लौटी तो दीपा मेरे घर कुछ रोज़ बिताने चली आयी....उसे देखा तो मैंने कहा:
" दीपा! बहुत खुश नज़र आ रही हो.....! क्या बात है? क्या प्रसाद ने फिर से फोन पे बात चीत शुरू कर दी?"
दीपा: " अरे नही! तुम काम से झटपट निपट लो....तुम से खूब सारी बातें करनी हैं....! बहुत कुछ बताना है....जब तक बता ना लूँगी,तुम्हें सोने नहीं दूँगी!"

रात का खाना खाके,मै चौका-बर्तन से फारिग हो गयी....हम दोनों बिस्तर पे पैर पसार के बैठ गए और दीपा बताने लगी...
" पता है...फेस बुक पे एक सुदर्शन नामक व्यक्ती कई बार मुझे फ्रेंड'स request भेज चुका था. मुझ से १० साल छोटा था,तो मै रिजेक्ट करती रही...एक दिन पता नहीं मुझे क्या सूझ गयी सो मैंने उसकी बिनती मान ली...! जब की,पिछले तकरीबन दो सालों से वाकफ़ियत भर भी नही थी...! वो इसी शहर का बाशिंदा निकला!  मुझ से मिलने के लिए बहुत आतुर था!"
मै:" अच्छा? और उसका परिवार? उस बारे में कुछ बताया? ये भी डिवोर्सी है? या फिर विधुर?"
दीपा : " नही....ऐसा कुछ नही...वो शादीशुदा है....दो बच्चे हैं...."
मै:"और उसकी पत्नी?"
दीपा:" पत्नी है.....अधिकतर बीमार रहती है...सौतेला बाप है,जो जायदाद को लेके उसे बहुत परेशान कर रहा है.."
मै :" दीपा! दीपा ! ये कहाँ फँस रही हो? आज गर वो अपनी पत्नी से बेवफाई कर रहा है,तो कलको तुम्हारे साथ भी वही कर सकता है....! "
दीपा :" नही...नही...मुझे ऐसा नही लगता...!"
मै :"क्या तुम दोनों मिल चुके हो एक दुसरे से?"
दीपा :" हाँ! मैंने उसे मेरे ही घर बुलाया था...उसने मेरा हाथ थामा तो मै सिहर गयी...उसके स्पर्श में वफ़ादारी है....वो मुझे अपनी कार में भी घुमाने ले गया...कई बार....मुझे बाहों में भी भर लिया....उसके स्पर्श में हवस नही है...वो तो बस कई बार मेरी एक झलक पाने के लिए,कितनी,कितनी दूर से चला आता है...."
मै :" लेकिन दीपा! एक शादीशुदा आदमी से इस तरह का रिश्ता.....क्या तुम्हें गलत नही लगता....??मुझे तो लगता है,के वो अपने परिवार के साथ विश्वासघात कर रहा है.....या फिर तुम्हारी दोस्ती का नाजायज़ फायदा उठा रहा है! "
दीपा :" नही....वो तो मुझ से ब्याह करने को राज़ी  है...!"
मै :" तो क्या अपनी पत्नी को क़ानूनन छोड़ देगा तुम से ब्याह करने के लिए? और उसके बच्चे?"
दीपा :" नही...पत्नी को छोड़ेगा तो नही...लेकिन वो कहता है,के मै तुम्हे भी वही दर्जा दूँगा,जो एक पत्नी का होता है!  "
मै :" दीपा! तुम अच्छी तरह से जानती हो के ऐसी शादी को क़ानून नही मानता! क्या तुम "दूसरी औरत" की हैसियत से रहोगी उस के साथ....?"
दीपा : " लेकिन मै शादी तो करना ही नही चाहती ...मुझे तो केवल एक पुरुष मित्र चाहिए था....वो मिल गया...इससे आगे मुझे और कुछ नही सोचना...ये समाज और उसके तौर तरीक़े...! इसी में बंध के इतने साल निकल गए! मै भावनात्मक तौर से उसके साथ बहुत जुड़ गयी हूँ...वैसे भी उसकी पत्नी का कोई अधिकार तो मै छीन नही रही. वो अपने परिवार के प्रती सारी ज़िम्मेदारी निभाता रहेगा! बल्कि,उसने तो मेरे बच्चों को अपने बच्चों की तरह मान लिया है....उन्हें वो "हमारे बच्चे" करके ही संबोधित करता है..."
मै : " ऐसा रिश्ता कितने दिन निभ सकेगा?? "
दीपा :" मै तो ताउम्र इसे निभाउंगी....! और सुदर्शन भी यही कहता है!"
मै :" मुझे तो तुम्हारी चिंता हो रही है....सही गलत का निर्णय मै नही करुँगी.....पर तुम्हारी खुशी ज़रूर चाहती हूँ...आख़िर हर रिश्ते का मक़सद तो वही होता है,है ना? उसने अपनी पत्नी से भी यही वादा कभी किया होगा?"
दीपा:" लेकिन मेरा मन कहता है,सब ठीक होगा....हम दोनों कल भी कुछ देर मिलने वालें हैं! मेरा तो उससे पल भर भी अलग होने को जी नही चाहता!"

दीपा और भी बहुत कुछ बताती रही...बहुत उत्तेजित थी....लेकिन उसने मुझे गहरी सोचमे   अवश्य डाल दिया....पता नही,इस रिश्ते का भविष्य क्या था???क्या होगा???

क्रमश:





18 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

kuch hatke par interesting............
waiting for next post.

Apanatva ने कहा…

kuch hatke par interesting............
waiting for next post.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

:)

रचना दीक्षित ने कहा…

कहानी में ट्विस्ट. जरा हट के जा रही दीपा.

चलो देखते हैं अगली कड़ी में क्या होता है.

उम्मतें ने कहा…

कथा की नायिका के बारे में मेरी धारणा बदलती हुई महसूस कर रहा हूं !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

आपके लिखे पुराने अंकों को पढ़ नहीं पाया, टाइम निकाल के ज़रूर पढूंगा तभी टिपण्णी कर सकूँगा!

pragya ने कहा…

बहुत ज़्यादा अकेलापन कई बार कुछ भी सोचना-मानना नहीं चाहता...देख पा रही हूँ एक और विश्वासघात पाने की ओर बढ़ रही है दीपा अपनी अकुलाहट में...अफ़सोस..

शारदा अरोरा ने कहा…

aisa lag raha hai ki koi dharna toot rahi hai ...insaan kee bhatkan use kahan la khada karti hai ...parchhaiyon ke peeche bhagti najar aa rahi hai ye kirdar ...registanonme pani durlabh hai ..

kavita verma ने कहा…

akelepan ka bhatkav hai ye...pravah poorn kahani..

Asha Joglekar ने कहा…

अकेलापन क्या क्या कराता है अच्छे भले इन्सान से । दीपा सम्हल जाओ वक्त रहते ।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

कहानी की दीपा जी अतिभावुक एवं जल्दबाजी में कदम उठाने वाली लग रही हैं. किसी पर इतनी जल्दी भरोसा भी ठीक नहीं..

ZEAL ने कहा…

सच्चा प्रेम आग से खेलने जैसा होता है । दीपा की भावनाएं और बातें अति स्वाभाविक है , और ख़ुशी है ये देखकर की सच्चा प्रेम करने वाला सुरर्शन उसके साथ है ...लेकिन मन में डर दीपा को कहीं धोखा न मिले अंत में।

पंकज मिश्रा ने कहा…

बहुत सुंदर। पूरा तो नहीं पढ़ सका, लेकिन जितना पढ़ा अच्छा लगा। अब लगता है आगे भी पूरा पढऩा पड़ेगा।

Urmi ने कहा…

काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा! बहुत सुन्दर, शानदार और जबरदस्त कहानी लिखा है आपने ! अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा!

Smart Indian ने कहा…

अस्थिर मन - अपना भी दुश्मन, अपनों का भी।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

badhiya chal rahi hai kahani..deepa ke man ki baten bahut kuch hai..aage padhana chahenge..

sundar kahanike liye dhanywaad..badhai kshma ji

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर.. मन को छू गई

कुमार संतोष ने कहा…

aaj ye ank padha to purane anko ko bhi padhne ki jigyasa hui aur ek hi saans mein puri kahani padh dali kahani ne shuru se ab tak bandhy rakha hai. Aage ki kahani ka intzaar rahega.