शुक्रवार, 21 जून 2013

क्या आप जानते हैं? 2

जारी है, श्री शेखावत, भारत के माजी उपराष्ट्रपती के द्वारा दिए गए भाषण का उर्वरित अंश:
श्री शेखावतजी ने सभागृह मे प्रश्न उपस्थित किया," ऐसे हालातों मे पुलिसवालों ने क्या करना चाहिए ? कानून तो बदलेगा नही...कमसे कम आजतक तो बदला नही ! ना आशा नज़र आ रही है ! क़ानूनी ज़िम्मेदारियों के तहत, पुलिस, वकील, न्यायव्यवस्था, तथा कारागृह, इनके पृथक, पृथक उत्तरदायित्व हैं।

"अपनी तफ़तीश पूरी करनेके लिए, पुलिस को अधिकसे अधिक छ: महीनोका कालावधी दिया जाता है। उस कालावाधीमे अपनी सारी कारवाई पूरी करके, उन्हें न्यायालय मे अपनी रिपोर्ट पेश करनेकी ताक़ीद दी जाती है। किंतु, न्यायलय पे केस शुरू या ख़त्म करनेकी कोई समय मर्यादा नही, कोई पाबंदी नही ! "

शेखावतजीने ऐलानिया कहा," पुलिस तक़रीबन सभी केस इस समय मर्यादा के पूर्व पेश करती है!"( याद रहे, कि ये भारत के उपराष्ट्रपती के उदगार हैं, जो ज़ाहिरन उस वक्त पुलिस मेहेकमेमे नही थे....तो उनका कुछ भी निजी उद्दिष्ट नही था...नाही ऐसा कुछ उनपे आरोप लग सकता है!)
"अन्यथा, उनपे विभागीय कारवाई ही नही, खुलेआम न्यायलय तथा अखबारों मे फटकार दी जाती है, बेईज्ज़ती की जाती है!! और जनता फिर एकबार पुलिस की नाकामीको लेके चर्चे करती है, पुलिसकोही आरोपी के छूट जानेके लिए ज़िम्मेदार ठहराती है। लेकिन न्यायलय के ऊपर कुछभी छींटा कशी करनेकी, किसीकी हिम्मत नही होती। जनताको न्यायलय के अवमान के तहत कारवाई होनेका ज़बरदस्त डर लगता है ! खौफ रहता है ! "
तत्कालीन उप राष्ट्रपती महोदयने उम्मीद दर्शायी," शायद आजके चर्चा सत्र के बाद कोई राह मिल जाए !"
लेकिन उस चर्चा सत्रको तबसे आजतक ७ साल हो गए, कुछभी कानूनी बदलाव नही हुए।

उस चर्चा सत्र के समापन के समय श्री लालकृष्ण अडवानी जी मौजूद थे। ( केन्द्रीय गृहमंत्री के हैसियतसे पुलिस महेकमा ,गृहमंत्रालय के तहेत आता है , इस बातको सभी जानतें हैं)।
समारोप के समय, श्री अडवाणीजी से, (जो लोह्पुरुष कहलाते हैं ), भरी सभामे इस मुतल्लक सवाल भी पूछा गया। ना उन्ह्नों ने कोई जवाब दिया ना उनके पास कोई जवाब था।
बता दूँ, के ये चर्चा सत्र, नेशनल पुलिस commission के तहत  ( 1981 ) , जिसमे डॉ. धरमवीर ,ICS , ने , पुलिस reforms के लिए , अत्यन्त उपयुक्त सुझाव दिए थे, जिन्हें तुंरत लागू करनेका भारत के अत्युच्च न्यायलय का आदेश था, उनपे बहस  करनेके लिए...उसपे चर्चा करनेके लिए आयोजित किया गया था। आजभी वही घिसेपिटे क़ानून लागू हैं।
उन सुझावों के बाद और पहलेसे ना जाने कितने अफीम गांजा के तस्कर, ऐसे कानूनों का फायदा उठाते हुए छूट गए...ना जाने कितने आतंकवादी बारूद और हथियार लाते रहे, कानून के हथ्थेसे छूटते गए, कितने बेगुनाह मारे गए, कितनेही पुलिसवाले मारे गए.....और कितने मारे जायेंगे, येभी नही पता।
ये तो तकरीबन १५० साल पुराने कानूनों मेसे एक उदाहरण हुआ। ऐसे कई कानून हैं, जिनके बारेमे भारत की जनता जानती ही नही।
मुम्बई मे हुए ,सन २००८, नवम्बर के बम धमाकों के बाद, २/३ पहले एक ख़बर पढी कि अब e-कोर्ट की स्थापना की जा रही है। वरना, हिन्दुस्तान तक चाँद पे पोहोंच गया, लेकिन किसी आतंक वादीके मौजूदगी की ख़बर लखनऊ पुलिस गर पुणे पुलिस को फैक्स द्वारा भेजती, तो न्यायलय उसे ग्राह्य नही मानता ...ISIका एजंट पुणे पुलिसको छोड़ देनेकी ताकीद न्यायलय ने की ! वो तो लखनऊसे हस्त लिखित मेसेज आनेतक, पुणे पुलिस ने उसपे सख्त नज़र रखी और फिर उस एजंट को धर दबोचा।
समाप्त 

6 टिप्‍पणियां:

sourabh sharma ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट। शेखावत जी मुझे बहुत अच्छे लगते थे।

Rajput ने कहा…

बहुत कुछ सोचने पे विवश करती सार्थक रचना

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत सुंदर और सामयिक विषय पर आपने चर्चा की है. क़ानून और कानून पालन करवाने का तंत्र दोनों की आमूलचूल समीक्षा होनी निहायत आवश्यक हो गयी है. शेखावत जी एक अच्छे विचारक और उम्दा शख्शियत थे, इसमें कोई संदेह नहीं.

Ramakant Singh ने कहा…

विचारणीय पोस्ट

Sarik Khan Filmcritic ने कहा…

Bahut Badiya Lekhan

Asha Joglekar ने कहा…

हमारी सारी व्यवस्था में सुधार की जरूरत है ।