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शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

बिखरे सितारे:९:होली का यह रंग भी..

(पूर्व भाग:उस दिनों पूजा की माँ दौड़ी चली आयीं थीं..हर तरह से उन्हों ने पूजा की सहायता की...वो दस दिन पूजा एक पलक नही सोयी..बच्ची को मौत के मूह से मानो छीन लाई...बच्ची जी कैसे गयी,यह तो अस्पताल वालों के लिएभी एक अजूबा था...
क्या पता था पूजा को की, ऐसे तो और कई हालात आने वाले थे...जो उसे आज़माने वाले थे...अब आगे पढ़ें...)

कब सोचा था पूजाने की, गौरव के साथ उसका जीवन इतना बदरंग हो जायेगा? बिटियाको अस्पताल में भरती करनेसे कुछ ही रोज़ पूर्व होली आयी और गयी.. बिटियाकी पहली होली थी,लेकिन घरमे जैसे मातम छाया रहता..पूजा अपनी ओरसे माहौल में हँसी घोलती रहती...यह सोच की, कहीँ केतकी पे विपरीत असर ना हो जाय..उसका जीवन बिटिया तथा घर संसार में सिमट के रह गया था...

पूजा अपने आपमें अनूठी कलाकार थी..जब कभी मौक़ा हात लगता वो बिटिया को लेके उसके सामने कलाकृतियाँ बनाती रहती...कभी कागज़ पे , कभी कपडे पे  तो कभी कपडे के टुकड़े और धागे लेके...बच्ची १३ माह की हुई और पूजा के पैर फिर से भारी हो गए...

ऐसा नही था,की, पूजा को आने वाली ज़िंदगी में किसीने पूछा ना हो..खासकर सखी सहेलियों ने की, उसने ऐसा घुट के जीना क्यों मंज़ूर किया? जवाब साफ़ था...गौरव का रसूक इतना था,की, पूजा गर अलग होने की बात भी करती तो, उससे बच्ची छीन ली जाती..चाहे बाद में वो नन्हीं जान मर मर के जीती...पूजा अपनी औलाद से जुदा होही नही सकती थी...वो कई बार टूटी...बिखरी..लेकिन हर बार संभल  गयी...एक माँ की ज़िम्मेदारी वो किसी भी हालत में नकार नही सकती थी...

और अब एक और जीव दुनियामे आनेवाला था...अबके तो सासू माँ ने बेटे की रट लगा दी...यह एक और भय पूजा तथा उसके नैहर वालों की  क़िस्मत लिखा था...बेटा हुआ तो, लेकिन पूजा तक़रीबन ३६ घंटे प्रसूती वेदना से गुज़री...उसका कारण मानसिक दबाव था...नैहर में बिटिया को सबसे अधिक प्यार मिलता लेकिन ससुराल में बेटे के आने के बाद तो बिटिया की औरभी दुर्दशा होने लगी...दिन गुज़रते गए...

वो दिनभी आया जब बिटिया को स्कूल जाना था....उन्हीं दिनों बिटिया ने अनजाने ही अपनी माँ को एक यादगार तोहफा दिया...जिसकी क़द्र बरसों बाद पूजा को हुई...उस का एहसास हुआ,की, वो तोहफा कितना नायाब था...

क्रमश: