.(पूर्व भाग:सुबह तक पूजा नही संभल पाई... केतकी कुछ बेहतर थी..पूजाने लाख कहा: " आप दोनों निकल जाएँ...मै कल परसों बिटिया को लेके ट्रेन से बंगलौर लौट जाउँगी..."
लेकिन जनरीती की दुहाई देते हुए सब वापस लौट गए. पूजा और बिटिया से दोनों ने बात चीत करनी बंद कर दी...
इसके कुछ ही दिनों बाद एक ऐसी घटना घटी, जब केतकी मौत के मूह से लौट आयी...)अब आगे पढ़ें...
पूजा, केतकी, गौरव और माजी...चारों बंगलोर लौट आए.. पूजा सतत एक अपराध बोध तले दबी रहती..जैसे केतकी को जनम देके उसने कोई गुनाह किया हो..दूसरी ओर अपनी बेटी के प्रती भी उसे एक अपराधबोध ग्रासता रहता...उसे खूब महसूस होता की, बिटियाको...उस नन्हीं, मासूम जानको वो प्यार नही मिल रहा जिसकी वो हक़दार थी..
बंगलोर लौटने के चंद रोज़ बाद गौरव को किसी दफ्तर के कामसे देहली जाना पड़ा. वो गुरुवार का दिन था..गुरुवार शामसे केतकी की तबियत फिर एकबार बिगड़ गयी...उसे उल्टियाँ होना शुरू हो गयीं..पूजा उसे सरकारी डिस्पेंसरी में ले गयी..वहाँ से जो दवा दी गयी,उससे बच्ची की तबियत क़तई संभली नही. उसने सुबह फिरसे उसे डिस्पेंसरी ले जाना चाहा,लेकिन सास ने टोक दिया," क्या इतनी उतनी बात से डॉक्टर के भागती फिरती हो...बच्ची को ज़रुरत से ज़्यादा ही नाज़ुक बना रही हो..हमने भी बच्चे बड़े किये, हम तो घरेलु दवाई चटा देते थे.."
कहके उन्हों ने पूजा को टोक दिया और जायफल घिसके केतकी को चटाने के लिए कह दिया..उसने तुरंत पलट दिया...शुक्रवार की शाम हो आयी..पूजा उसे फिर डिस्पेंसरी ले गयी..वहाँ की डॉक्टर ने मूह से लेने की ही दवाई दे दी...जबकि,पूजा उनसे कहती रही," बच्ची के पेटमे कुछ टिक नही रहा है..आप इसे injection लगा दें..."
पूजा की एक न चली...शनिवार की सुबह्तक बच्ची निढाल हो गयी...न वो आँखें खोल पाती ना रो पाती...अबके पूजा ने गौरव के दफ्तर में फ़ोन लगाके इत्तेला दी तथा किसी बालरोग विशेषग्य की जानकारी चाही.
जब बाल रोग विशेषग्य ने सारी बात फ़ोन पे सुनी तो उसने पूजा को जोरसे डांट सुना दी," अपने आपको पढी लिखी कहती हो, और ये हाल होने रुकी रहीं? मै नही ज़िम्मेदारी ले सकती...किसी बड़े अस्पताल में ले जाओ.."
अस्पताल ले जाने के लिए सरकारी डिस्पेंसरी से लिखत में नोट ज़रूरी थी...डिस्पेंसरी बंद हो चुकी थी...शनिवार को आधाही दिन खुलती थी...अब बात इतवारकी सुबह्तक पहुँच गयी...
गौरव के सहकर्मी ऐसे में दौड़े चले आए...पूजा ने चुपचाप एक बैग में कपडे आदी भर लिए..सासू माँ को अस्पताल में दाखिले की बात नही बताई.
काफ़ी दौड़ भाग के बाद general वार्ड में केतकी को दाखिल कर लिया गया. अब उसकी नब्ज़ मिलना मुश्किल हो गया..doctors की के टीम IV चढ़ानेके लिए लग गयी...पूजा को वहाँ से हटा दिया गया ..अंतमे २ घंटों के बाद एक vien मिली..अब बच्ची को दस्त भी लग गए..हर एक घंटे से शरीर में पानी की मात्रा चेक करने nurses आ जातीं और बच्ची बिलख उठती...
सोमवार के दिन गौरव लौट आया...बच्ची के पलंग के पास खड़ा रह वो डॉक्टर से कुछ बतिया रहा था तब, बची के कानों में अपने पिता की आवाज़ पडी...उसने धीरेसे आँखें खोली और चेहरेपे एक प्यारी-सी मुस्कान बिखेर दी...पूजा की आँख भर आयी..और इधर पूजा ने गौरव को डॉक्टर से कहते हुए सुन लिया," मुझे बच्ची के जान की परवाह नही,लेकिन गर उसे कुछ हो गया तो उसकी माँ मर जायेगी...!" सुनके पूजा के दिलपे नश्तर चल गए..
इसी तरह अस्पताल में १० दिन गुज़रे...५ वे या छटे दिन वहाँ के डॉक्टर ने पूजा को सभी के सामने पूछा," आखिर आपने इसे अस्पताल में भरती करने में इतने दिन क्यों लगा दिए?"
पूजा निरुत्तर हो खामोश रही तो गौरव ने उससे कहा," जवाब माँग रहे हैं डॉक्टर साहब...बोलो.."
अंत में हारके पूजा ने कहा," घरमे बच्ची की दादी बड़ी और अनुभवी थीं...उन्हों ने घरेलु इलाज की सलाह दी...इसलिए...वैसे मैंने डिस्पेंसरी के डॉक्टर से भी कहा की, injection लगा दें...लेकिन...लेकिन..."
खैर डॉक्टर तो वहाँ से हट गए,लेकिन पूजा की सासू माँ ने दहाड़ें मार के रोना शुरू कर दिया," ये लो सुनो..कलको लडकी गर मर जाय तो मै ठहरी हत्यारिन...मैंने तो भलाही करना चाहा..लेकिन मुझपे किसका भरोसा...?"
फिर एकबार पूजा, गौरव तथा उसकी माँ के गुस्से का शिकार हो गयी..
उस दिनों पूजा की माँ दौड़ी चली आयीं थीं..हर तरह से उन्हों ने पूजा की सहायता की...वो दस दिन पूजा एक पलक नही सोयी..बच्ची को मौत के मूह से मानो छीन लाई...बच्ची जी कैसे गयी,यह तो अस्पताल वालों के लिएभी एक अजूबा था...
क्या पता था पूजा को की, ऐसे तो और कई हालात आने वाले थे...जो उसे आज़माने वाले थे...
क्रमश:
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रविवार, 21 फ़रवरी 2010
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