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मंगलवार, 8 जून 2010

बिखरे सितारे: सितम यह भी था..

.(गतांक:सब से भयानक बात जो सामने आयी वो यह थी...मेरे डॉक्टर ने मुझे ज़बरदस्त धोखा दिया था....एक डॉक्टर की शपथ को कूड़े में फेंक दिया था...क्यों? क्यों किया उसने ऐसा? एक जासूस का किरदार निभाते हुए, उसने हर तरह की झूटी बातें हर किसी से कहीँ थीं..यह कैसा विश्वास घात था...?जो पूरे एक साल से चल रहा था...अब आगे..)

इन घटनाओं का सिलसिला इतनी तेज़ी  से घट रहा था,की, मै जज़्ब नहीं कर पा रही थी... आज जब याद भी कर रही हूँ,तो दम घुटा जा रहा है...

केतकी से पता चला,की, डॉक्टर पूरे परिवार से मैंने कही हर बात बताते थे..जब मैंने उनसे कहा था, की,मुझे फोन के नए,नए उपकरणों में दी गयी सुविधाओं के बारे में नहीं पता,तो उन्हें यह बात झूट लगी थी...! ऐसा लगा तो मुझे सीधा कह देते,मै शायद विश्वास दिला सकती...

वो मेरी गतिविधियों के बारे में मेरे घर के नौकरों से पूछा करते थे..! नौकर जो कहते वो बातें गौरव को भी बताई जातीं..और जूली तथा ड्रायवर ने ना जाने क्या,क्या झूट उनसे कहा था...! उन सब बातों की फेहरिस्त दे के अब क्या फायदा?

अवी  के बारे में उन्हों ने गौरव को बताया..और सरल मूह से मुझे पूछा था ,की,गौरव को किसने बताया..! यह सब सुनती गयी, तो  मैंने उन्हें घर बुलाया..मै तड़प उठी थी,की,एक डॉक्टर इतना घात कैसे और क्यों कर रहा था....जब गौरव और केतकी की इस बारे में बात हुई तो गौरव ने कहा," गर नहीं बताता तो मै उसका गला न काट देता? "
हद हो गयी थी..! मतलब यह सब मिली भगत थी! उफ़!

जब मेरा उन से आख़री बार सामना हुआ,तो पता चला,उन्हों ने गौरव से कहा था,की,मै तो पार्लर गयी ही नही थी..! जब की, प्रिया मेरे साथ थी...! वो स्वयं प्रिया से मिले..पार्लर से लौटते हुए,उन्हें पिक अप किया था..और मेरे घर आए थे!
इसपर बोले:" मैंने उस पार्लर में फोन कर के पता किया था..वहाँ तुम्हारे नाम की बुकिंग नही थी..!" गर उन्हें शक था,तो मुझे फिर एकबार,चाहे तो प्रिया के सामने पूछ लेते..!
मैंने तुरंत प्रिया को फोन किया और पूछा,की,बुकिंग किस के नाम से थी? प्रिया ने कहा, उसके अपने नाम से..! क्यों की वह क्लिनिक की मुलाजिम थी, पेमेंट पार्लर की ओर से उसने करना था! लेकिन डॉक्टर फिरभी मेरी बात पे अविश्वास ही जताए जा रहे थे..इस के अलावा ,जब मैंने स्टेशन जाते हुए उन्हें घर छोड़ा तो वो बाद में मेरा पीछा करते हुए,वहाँ पहुँचे..और गौरव जो उनके फोन का इंतज़ार कर रहा था,अपने काफिले के साथ निकल पडा..!

उनके अलफ़ाज़ थे," आपकी पत्नी,एक अनजान आदमी को स्टेशन से घर लाने गयी है...दुल्हन की तरह सज के..!" गौरव ने यही अलफ़ाज़ मेरे और केतकी के आगे दोहराए थे...वजह? मेरी सुरक्षा! गर डॉक्टर  को मेरी सुरक्षा की चिंता हुई,तो सीधा मुझे आगाह कर सकते थे! जब की मैंने उनसे कहा था:" यह लड़का आपसे मिलना चाह रहा है..."
जब उनके पास जासूसी करने के लिए, इतना समय था,तो वो कुछ समय रुक के उसे परख लेते..मेरी सुरक्षा की इतनी चिंता थी,तो यह बात मुझे भी कह सकते थे...
जब गौरव का सह्कर्मी गोल्फ का सामान लेके घर से गया,तो उसे बिल्डिंग के नीचे रुके रहने का आदेश गौरव ने दिया! यह कौनसी नीती थी,इस डॉक्टर की ? एक पती-पत्नी के रिश्ते में दरार कम करने के बदले और बढ़ा देने की? सिर्फ उस रिश्ते में नही,दरार तो मेरे बच्चों ,बहन,भाई,माँ सब के दिलमे डाली गयी थी..

मेरी अनैतिकता की चर्चा गौरव ने अपने दोस्तों में खूब की..डॉक्टर का जो साथ अब मिल गया था...मुझे अपनी बहन से बेहद लगाव रहा..हम सहेलियां अधिक थीं..एक साथ कितने रिश्ते चटख रहे थे...

मेरा फिल्म मेकिंग  का course शुरू हुआ..नही,पता,की,मै यह सब झेलते हुए,किस तरह निभा रही थी..साथ,साथ, डेढ़ दो कमरे का मकान भी खोजना था..
केतकी ने अंत में इस बात की इत्तेला मेरे जेठ जेठानी को दी..उनको गौरव ने नही बताया था..सगे भाई जो नही थे..लेकिन जेठानी ने गौरव को तुरंत फोन किया..और कह दिया:' तुम गर हमारी बहू को घर से निकालोगे,तो,मेरा मरा मूह देखोगे..हम दोनों को उसके चरित्र पे किंचित भी शंका आ नहीं सकती.."
यह बात सुन,गौरव ना जाने क्यों सकपका गया..और उसने उन्हें कहा," ठीक है भाभी,आपकी बात रख  लेता हूँ.."
इस के पश्च्यात वो दोनों मेरे पास पहुँच गए...

क्रमश: