अब वो बगीचे नहीं, वो बेले और पेड़ उखड गए...एक वीरानगी-सी छाई रहती है...बेआराम बन मकान गया तो,माँ पिताजी को वहाँ हटके अलगसे एक छोटा घर बनाना पड़ गया...खैर अभी इस बात तक पहुँचने में समय है..!
उत्सुकता बढ़ती जारही है मकान बेआराम क्यों बन गया ,दादा मन में कौन सा दर्द छुपाये हैं ,किस टूटे रिश्ते के वारे में अब जानकारी मिलेगी दादा मायूसी क्यों छुपाना चाह रहे हैं ,पोती की बिदा तो इसका कारण नहीं | इन दोनो लेखों को क्रमांक १० व ११ नहीं दिया गया है ,एक ही दिन की पोस्ट दो भागों में और दोनो पर टिप्पणियाँ | अभी तो छोटू के हाथ से चली बन्दूक की गोली का परिणाम भी नहीं आया है | पढ़ते पढ़ते अच्छा लग रहा है
ये सत्य कथा है..काल्पनिक कुछ नही.....इसलिए तस्वीरें दे रही हूँ .. पूजा , मुख्य किरदार है ..और दी गयी हरेक तसवीर और बयानी , जिस तरह घटीं , उसी क्रम से हैं... हाँ ..मैंने अपना विश्लेषण या ख़यालात ज़रूर ज़ाहिर किए हैं ...किसी एक कड़ी पे आके , चाह रही हूँ ,कि, कथानकी मुख्य किरदार , कथा की बागडोर ख़ुद अपने हाथ लेले ..नही जानती कि ,वो दिन कब आएगा ..लेकिन इस मालिका में की हरेक तसवीर एक गाथा सुनाती है ... ज़रूरी है,कि, जब पूजा के जीवन के बेहद अन्तरंग लम्हों की बयानी शुरू हो,तब पूजा ख़ुद वो बयाँ करे...
दिगंबर जी ,आपने मेरी बेहद ज़र्रानवाज़ी और हौसला अफ़्ज़ायी की है ..तहे दिलसे शुक्र गुजार हूँ ..मै तो बेहद साधारण -सी व्यक्ती हूँ ...जो इस कहानी की चश्मदीद गवाह है ...! बस इतनाही ..!
क्षमा जी ,मेरे ब्लॉग पर आने और टिप्पणी के लिए धन्यवाद ! आज आपका पूरा ब्लॉग पढ़ा ! आपका अंदाजे बयां बहुत ही रोचक हैं , उत्सुकता बनी ही रहती है कि आगे क्या होगा ! आपका पाठक उसी कालखंड में बरबस खिचा चला जाता है जिसमें कहानी चल रही होती है और यही लेखन की सार्थकता और लेखक की सफलता है ! बहुत अच्छा लिख रही है आप !
घटनाओं को बड़ी खूबसूरती से पिरोया है कि गुत्थी सुलझाने के बजाये उलझाये रखने का मन करता है या दूसरे शब्दों में कहूं तो कथानक से जैसे एक जुड़ाव होने लगा है।
aapka yah sanamaran aapki lekhni ki sabalta darshata hai. pathakon ko baandh kar rakha hua hai aapne. tasveeron ne kathanak ko aur bhi jyada majbooti di hai. bas aise hi likhti rahen.
20 टिप्पणियां:
bahut hi achchi rachna aapke bahumuly sujhaawon ka hamesha swagat hai.....
आशियाना उजडने पर गम तो होता हॆ,वाकया जानने के लिये आपकी अगली पोस्ट का इंतजार हॆ
is dard ka anubhav mujhe he/
THANX. VERY PIERCING FACT !
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है !
amazing work again.
waqt kabhi ek sa nahi rehta.......
maine paas se saha hai bhai.
..jo ghar na dekho wo badiya.
उत्सुकता बढ़ती जारही है मकान बेआराम क्यों बन गया ,दादा मन में कौन सा दर्द छुपाये हैं ,किस टूटे रिश्ते के वारे में अब जानकारी मिलेगी दादा मायूसी क्यों छुपाना चाह रहे हैं ,पोती की बिदा तो इसका कारण नहीं |
इन दोनो लेखों को क्रमांक १० व ११ नहीं दिया गया है ,एक ही दिन की पोस्ट दो भागों में और दोनो पर टिप्पणियाँ | अभी तो छोटू के हाथ से चली बन्दूक की गोली का परिणाम भी नहीं आया है | पढ़ते पढ़ते अच्छा लग रहा है
SACH MEIN YE GAM SAHNA MUSHKIL HOT HAI .......
ये सत्य कथा है..काल्पनिक कुछ नही.....इसलिए तस्वीरें दे रही हूँ ..
पूजा , मुख्य किरदार है ..और दी गयी हरेक तसवीर और बयानी , जिस तरह घटीं , उसी क्रम से हैं...
हाँ ..मैंने अपना विश्लेषण या ख़यालात ज़रूर ज़ाहिर किए हैं ...किसी एक कड़ी पे आके , चाह रही हूँ ,कि, कथानकी मुख्य किरदार , कथा की बागडोर ख़ुद अपने हाथ लेले ..नही जानती कि ,वो दिन कब आएगा ..लेकिन इस मालिका में की हरेक तसवीर एक गाथा सुनाती है ... ज़रूरी है,कि, जब पूजा के जीवन के बेहद अन्तरंग लम्हों की बयानी शुरू हो,तब पूजा ख़ुद वो बयाँ करे...
दिगंबर जी ,आपने मेरी बेहद ज़र्रानवाज़ी और हौसला अफ़्ज़ायी की है ..तहे दिलसे शुक्र गुजार हूँ ..मै तो बेहद साधारण -सी व्यक्ती हूँ ...जो इस कहानी की चश्मदीद गवाह है ...! बस इतनाही ..!
इस पोस्ट में कथ्य तो कम लग रहा है पर चित्र बहुत कुछ बोल रहा है, अगली कड़ी का भी बेसब्री से इंतजार है.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
क्षमा जी ,मेरे ब्लॉग पर आने और टिप्पणी के लिए धन्यवाद ! आज आपका पूरा ब्लॉग पढ़ा ! आपका अंदाजे बयां बहुत ही रोचक हैं , उत्सुकता बनी ही रहती है कि आगे क्या होगा ! आपका पाठक उसी कालखंड में बरबस खिचा चला जाता है जिसमें कहानी चल रही होती है और यही लेखन की सार्थकता और लेखक की सफलता है ! बहुत अच्छा लिख रही है आप !
क्षमा जी,
घटनाओं को बड़ी खूबसूरती से पिरोया है कि गुत्थी सुलझाने के बजाये उलझाये रखने का मन करता है या दूसरे शब्दों में कहूं तो कथानक से जैसे एक जुड़ाव होने लगा है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
aapka yah sanamaran aapki lekhni ki sabalta darshata hai. pathakon ko baandh kar rakha hua hai aapne. tasveeron ne kathanak ko aur bhi jyada majbooti di hai.
bas aise hi likhti rahen.
अतीत की स्मृतियों और वर्तमान की पीड़ा को अच्छे शब्द दिए हैं आपने ।
संस्मरणात्मक गाथा धीरे-धीरे कई पड़ाव लेती हुई हमें पूजा के बारे में और बहुत कुछ जानने को उत्सुक कर रही है ।
उत्सुकता अपने चरम पर है...
कुछ टिप्पणियां अच्छा कामेडी सीन पैदा कर रही हैं... :-)
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