(पिछली कड़ी में लिखा था...वो रात शायद पूजा के जीवन की सब से हसीं रात थी..आगे आने वाले तूफानों से बेखबर!)
पिया ने प्यार का इज़हार तो कर दिया ! पूजा पे मानो एक नशा-सा छा गया ...पहला प्यार और वो भी हासिल...! कितने ऐसे ख़ुश नसीब होते होंगे...और उसके सभी प्रिय जन भी ख़ुश...!
सितारों भरी रात और आधा चंद्रमा अपना सफ़र तय करता गया..मौसम तो बरसात का ,लेकिन साफ़ आसमान था..ज़बरदस्त क़हत पड़ा हुआ था......
आँगन में सब के बिस्तर बिछे थे...एक ओर दादा-दादी...घरके पिछवाडे वाले खलिहान में माँ बाबा...और बिना छत के बरामदे में वो और छोटी बहन..कुछ ही दूरीपर छोटा भाई...
दोनों बहने में एकही बड़े पलग पे थीं......पूजा तो करवट भी नही लेना चाह रही थी,की, बहन कहीँ छेड़ ना दे...! रात भर वो चाँद का सफ़र देखती रही...कल दोपहर एक बार फिर प्रीतम आनेवाले थे...ऐसा खुमार होता है, पहले प्यारका? सुबह पौं फटने वाली थी तब कहीँ जाके कुछ देर उसकी आँख लगी...और फिर सूरज की किरणे आँखों पे पडी...वो उठ गयी...
उसे डर था कहीँ आँखों के नीचे काले घेरे न पड़ जाएँ...लपक के उसने अपनी शक्ल आईने में देखी...नही लाल डोरे तो थे, लेकिन कालिमा नही थी...होठों पे सुर्खी थी...अपनेआप से वो लजा गयी....
कब होगी दोपहरी?? कब आयेंगे 'वो'?? कैसे लेंगे उससे बिदाई...?? वक़्त थमा तो नही...लेकिन इंतज़ार के पल को पूजा थामना चाह रही....और समय रुका तो नही....? ये सवाल भी मन में आ रहा था...इतनी देर हुई और घड़ी के पाँच मिनट ही कटे?
'वो' आए तो फिर एकबार उसने घर के अन्दर का रुख किया लेकिन इस बार 'उन्हें' अन्दर भेज दिया गया...पलकें झुकी रहीं...माँ रसोई में चली गयीं....और पहली बार साजन ने बाहें फैला के उसे अपने पास भीं लिया...उसको चूम लिया...पूजा इतनी नादान थी, की , चुम्बन कैसा होता है, ये उसने किसी अंग्रेज़ी फिल्म में भी नही देखा था...!
कुछ भरमा-सी गयी...उसे लगा यही 'शरीर सम्बन्ध' होता है...कुछ नाराज़गी के साथ उसने 'उन्हें' अपने से दूर किया...बाहों में भरना तो ठीक था... ! ये क्या??लेकिन नशा कम नही था...उसने अपनी हथेलियों में अपना मुख छुपा लिया...'वो' उसका चेहरा हथेलिओं से छुडाते रहे...कितना समय बीता?
माँ ने खाने के लिए आवाज़ लगाई तो वो 'उन से' खुद को छुडा के , स्नान गृह में भाग गयी...वहाँ के शीशे में देखा तो उस के होटों के आसपास ...? ये क्या लाल दाग?? और सुराही दार गर्दन कैसे छुपाये...? त्वचा पे सूर्ख दाग..? उफ़ ! ये क्या कर दिया उसके साजन ने?? सारा पोल खोल दिया...! अब वो अपने दादा-दादी माँ- बाबा के सामने कैसे जाए??उसे भूख तो बिलकुल नही थी...क्या प्यार में या बिरह में भूख मर जाती है??किताबों में पढ़ा था...फिल्मों में देखा था...आज उसके साथ घट रहा था..
एक बार फिर माँ की आवाज़ आयी...उसने अपनी साडी दोनों काँधों पर ओढ़ ली...गर्दन तो कुछ छुप गयी...लेकिन कपोलों का क्या करे? और होंट ??खानेके मेज़ पे पहुँची तो उसकी स्थिती एक चोर जैसे हो रही थी...वो अपनी निगाहें उठा नही पा रही थी..और' वो' हर मौके बे मौके उसे देख रहे थे...और वो वक़्त भी गुज़र गया...देखते ही देखते 'उनके' जाने का समय आ गया...और चले गए...
अब उसे अचानक बिरह क्या होता है, ये पता चला...अब ना जाने कब पिया मिलेंगे? ' उन्हों ने' कहा था,की, पूजा तथा उसके माँ बाबा देहली आयें...लेकिन कब??
उसके बडौदा लौट ने के दिन आ गए, परीक्षा का नतीजा लाना था...वहाँ उसे कुछ दिन रुकना था...और वहीँ उसे साजन का पहला ख़त मिला....छात्रावास में अपनी सहेलियों से वो छुपा नही पा रही थी,की, उस ख़त को वह अपने तकिये के नीचे छुपा के सोती थी..पकडी ही गयी....
परिक्षा में वो अच्छी सफलता पा गयी थी...जब लौटी तो अपने घर पे एक और ख़त इंतज़ार कर रहा था...बहन ने बड़ी छेड़ खानी करते, करते उसे वो ख़त दिया...कैसा पागल पन सवार था...!! उसके बाद आए ख़त में लिखा था, की, किसी सरकारी काम से 'उन्हें' बेलगाम आना था...और पागल पूजा दिन गिनने लगी...अबकी मुलाक़ात कैसी होगी...ना,ना...अब वो अधिक नजदीकियों से रोकेगी...ये बात ठीक नही...लेकिन कैसे?
'वो' आए...पूजा को अपने बाहों में भरते हुए, बस बिदा के पहले कहा.....क्या कहा..? उसी बात ने उसके प्यार की नींव हिला दी...उसे तो बात समझ में नही आयी...लेकिन जब पूजा और माँ, बाद में देहली पहुँचे तो उस बातका गाम्भीर्य सभीके ख्याल में आया....प्यार भरे दिल पे एक चोट का एहसास...प्यार में शर्तें?? क्या शर्त थी?? पूजा को अब क्या निर्णय लेना चाहिए था??क्या हुआ उनकी देहली के वास्तव्य में? क्या बात थी जो पूजा ने अपनी माँ या दादा दादी को नही बताई थी...या उसकी अहमियत उसे समझ नही आयी थी....?क्या भविष्य था उसके प्यार का ??
क्रमश:
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17 टिप्पणियां:
पूजा की तरह ही मैं भी इन्तज़ार करती हूं इस श्रृंखला की हर कडी का, लेकिन इन्तज़ार जितना लम्बा होता है, पढने में उतना ही कम समय लगता है. लगता है जैसे अभी तो पढना शुरु किया था और कडी खत्म भी हो गई?
आंगन मे सबके बिस्तर बिछे थे .. कितना दुर्लभ हो गया है अब यह दृश्य शहर मे मै तो इस दृश्य मे ही पूरी कथा बुन सकता हूँ । इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई -शरद
bahut achha likha hai aapne..jigyasa badhti hi jaati hai har ek post ke baad :)
waiting for the next one...
एक बार फिर माँ की आवाज़ आयी...उसने अपनी साडी दोनों काँधों पर ओढ़ ली...गर्दन तो कुछ छुप गयी...लेकिन कपोलों का क्या करे? और होंट ??खानेके मेज़ पे पहुँची तो उसकी स्थिती एक चोर जैसे हो रही थी...वो अपनी निगाहें उठा पा रही थी..और' वो' हर मौके बे मौके उसे देख रहे थे...
शायद इस अनुभूति से उपजी शर्म से बचाव के लिए ही अपने पुरखों ने घूँघट रखने की प्रथा का प्रचालन किया रहा होगा,............
कहानी रोचक होती जा रही है.
अगली कड़ी का इंतजार है..........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बाप रे!! इतनी अनजान-नादान लड़की, अभी से यह आलम है आगे क्या होगा? मैं तो बेहद संजीदा हो गया हूँ सोच सोच कर कि बेचारी को जब इस रिश्ते की ख़ास हकीकत का एहसास होगा, फिर क्या होगा...?
पूजा की यह कड़ी भी मार्मिक लगी।
बधाई!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..कहानी में भी कविता का आभास,वो खुला आसमान और चाँद का सफ़र...किसी बीते युग की बात लगती है ..स्मरण दिलाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
मन को छू लेने में समर्थ है आपकी यह रचना, लिखती रहें, हम पढ रहे हैं।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
utsukta badti jaa rahi hain
कहानी रोचक होती जा रही है......अगली कड़ी का इंतजार है..........
As always, this too was a beautiful post! Waiting for the next------!
pooja ki kahani din par din rochak hoti jaa rahi hai ise padhne ki utsukta badhti hi jaa rahi hai .aapke blog par aapne apni tasvir nahi lagai nahi to lekhak ki khoobsurati kam nahi hogi ye mera khyaal hai .
kshmaji
khani to bhut rochk hoti jarhi hai par intjar bahut karna pdta hai .
इतने सारे सवाल...!!!! उफ़्फ़्फ़्फ़ क्या हुआ इस इश्क की दास्तान को???
अगली किश्त का इंतजार है....
कोई किश्त छूटी तो नहीं न मुझसे क्षमा जी?
pyar aur ehsaas liye hua kahani bahut badhiya lag rahi hai..khas kar kuch drishy jaise puja aur bahan ke sath chedchad aur puja ka sharmana prem ki abhivyakti par aapne bahut hi achcha darshaya hai...
bahut badhiya dhanywaad
आपकी कहानी में संवेदनाओं को बहुत गहराई से उकेरा गया है।
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aapki kahani ahssason, bhavnaao aur na jane kaise kaise zajbaaton ka sagar hai...ham pathak bas usmein doobte-utraate rehte hain....
bahut sundar...
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