बुधवार, 8 सितंबर 2010

Bikhare sitare: Raheemaa

कई जीवनियाँ दिमाग में उथल पुथल मचा रही हैं..दीपाके साक्षात्कार में  अभी कुछ कमी-सी लग रही है.तभी रहीमा का ख़याल आया.इसके जीवन के  सब से अधिक नाट्यपूर्ण प्रसंग तो मेरे आँखों देखे घटे थे..

सोलापूर जैसे छोटे शहरमे मेरे पती की पोस्टिंग  थी. वो पुलिस  महकमे में IPS अफसर थे. सख्त और उसूलों के पक्के.

ये S. P.की हैसियत से जब वहाँ पहुँचे तो सिविल lines में हमारा सरकारी निवास्थान था.रहीमा का घर एकदम पास था और वो सोलापूर की ही बाशिन्दी थी. मतलब स्कूल और कॉलेज की पढाई वहीँ हुई थी.नैहर भी वहीँ था.माता पिता का देहांत हो चुका था. एक भाई मुंबई में रहता था. एक बहन अमरीका में .
रहीमा का  ब्याह तो एक आर्मी के अफसरसे हुआ था पर उसकी पोस्टिंग NCC में commandant के तौरपे सोलापुर में हुई थी .वो लोग रहीमा के बडेसे पुश्तैनी मकान में रह रहे थे.रहीमा के साथ उसके वालिद वालिदैन के ज़माने के पुराने वफादार नौकर भी थे.पिताकी मृत्यु के पूर्व भारत की अन्य जगहों पे रह चुके थे.

रहीमा के पिताकी कुछ ही अरसा पूर्व मृत्यु हुई थी . उनके घरके पास ही उनका पेट्रोल pump  था. इसके चलाने की ज़िम्मेदारी रहीमा पे आन पडी,जो वो भली भांती निभा रही थी.

हमारे बच्चे हमउम्र थे तो अच्छी निभ जाती थी. बड़ा लड़का,आफताब,छोटे बिटिया,महताब.रहीमा का पती कुछ ज़रुरत से ज़्यादा ही पियक्कड़ था.इस वजह खाना आदि समाप्त होने में बहुत देर हो जाती और मै परेशान हो जाती.खैर.

पुलिस lines में मै काफ़ी काम करती रहती.उसमेसे एक था मनोरंजन  के कार्यक्रमों को चालना  देना. महिलाओं के खेल,रंगोली स्पर्धा,मेडिकल चेक ups ,lines की सफाई,पर्यावरण के बारेमे सचेत करना,बालवाडी चलाना आदि सब इसमें शामिल था.

एक शाम की बात है.मै ऐसेही एक कार्यक्रम के आयोजन से बेहद थकिमान्दी घर पहुँची.बस क़दम ही रखा था की,रहीमा के बड़े बेटे का फ़ोन  आया. वो मेरे पती से तुरंत बात करना चाह रहा था. मैंने इन्हें फ़ोन पकडाया. मुझे वो बहुत परेशान लगा. आखिर स्कूल का ही बच्चा था.

उसकी बात सुनते,सुनते इनका चेहरा सख्त हो गया.फ़ोन रखते ही बोले मुझे मुझे तुरंत वहाँ जाना होगा.लतीफ़(रहीमा का पती)और रहीमा के बीछ बेहद पेचीदा सवाल उठ खड़ा हुआ है.
"मै चलूँ साथ?" मैंने पूछा,हालांकी मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था और मै injection के लिए डॉक्टर को बुला चुकी थी."नही,"इनका रूखा-सा जवाब.उस समय रात के १२ बज चुके थे.ये चले गए पर मेरी आँख नही लगी. तक़रीबन सुबह के तीन बजे ये लौटे.

मैंने पूछा,' क्या हुआ था? सब ठीक ठाक तो हो गया न?"
"नही.और होगा ऐसा लगता नही...जब मै जलगांव इनकी unit के स्थापना दिवस के लिए गया था,तभी मुझे कुछ शक हुआ था..खैर...अब मुझे उस बारे में बात नही करनी...रहीमा का चरित्र ठीक नही है."
इतना कह ये सो गए. दूसरे दिन इन्हें अमरावती में होने वाले राज्य पोलिस क्रीडा स्पर्धा के लिए जाना था. मैंने packing तो तक़रीबन करके रखी थी. बच्चों के इम्तेहान सरपे थे तो मेरा जाना मुमकिन न था.

पिछली रात की घटना के बारे में मेरे दिमाग में उथलपुथल तो मच ही गयी थी.ऐसा क्या हुआ होगा?क्या मैंने खुद होके रहीमा को पूछना चाहिए या नही? शायद वो खुद ही बताना चाहे!
ये बाते मनमे आ रहीं थीं और रहीमा का डरा-सा फ़ोन आया,"तुम तुरंत आओ और मुझे किसी तरह बचा लो!बड़ी मुश्किल से मुझे फ़ोन करने का मौक़ा मिला है..."

क्रमश:

16 टिप्‍पणियां:

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

काव्य प्रयोजन (भाग-७)कला कला के लिए, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

विवेक सिंह ने कहा…

अगली किस्त का इंतजार रहेगा ।

Basanta ने कहा…

Thank you for a story again! It seems as interesting as the previous one. I will be following this one too with my heart.

उम्मतें ने कहा…

रहस्यमय अंश से शुरूवात ! देखें आगे क्या होता है !

vandana gupta ने कहा…

interesting hai ab agli kadi ka intzaar hai.

arvind ने कहा…

shuruaat me hi rochakta aa gayee hai...agle kist kaa intejar rahega.

मनोज कुमार ने कहा…

रोचकता बनी है।
अगली कड़ी का इंतज़ार!!

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

एक और बेहतर शुरूआत...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुंदर पोस्ट है!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

ऐसी जगह पर खत्म किया है न, कि जब तक अगली कड़ी न पढ लूं, चैन कहां??

Urmi ने कहा…

बहुत ही दिलचस्प, रोचक और रहस्मयी शुरुआत! अब तो अगली कड़ी का इंतज़ार है!

kumar zahid ने कहा…

रहीमा के पिताकी कुछ ही अरसा पूर्व मृत्यु हुई थी . उनके घरके पास ही उनका पेट्रोल pump था. इसके चलाने की ज़िम्मेदारी रहीमा पे आन पडी,जो वो भली भांती निभा रही थी.



ईद मुबारक!!

Urmi ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

मुझसे सस्पेंस ज़रा भी बर्दाश्त नहीं होता...आपने अच्छा सस्पेंस बरकरार रखा है...एक दिमाग़ी ख़लल दुरुस्त करेंगी...आपने लिखा है,"मै injection के लिए डॉक्टर को बुला चुकी थी." और यह भी कि "उस समय रात के १२ बज चुके थे."
कुछ अटपटा नहीं लगता,टाइमिंग के मामले में??
कहानी (सत्यकथा) ने बाँध लिया है...आना ही होगा!!

रचना दीक्षित ने कहा…

रोचक....अगली किस्त का इंतजार रहेगा

मनोज भारती ने कहा…

मै injection के लिए डॉक्टर को बुला चुकी थी." और यह भी कि "उस समय रात के १२ बज चुके थे."

बिहारी बाबू का तर्क दुरुस्त है ।

पढ़ना शुरु किया है ...धीरे-धीरे पढ़ ही लेंगे ।