बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

कीमती तोहफा

                                                                                                      
बरसों साल पूर्व की बात है. हम लोग उन दिनों मुंबई मे रहते थे. मेरी बिटिया तीन वर्ष की थी. स्कूल बस से स्कूल जाती थी. एक दिन स्कूल से मुझे फोन आया कि बस गलती से उसे पीछे छोड़ निकल गयी है. मै तुरंत स्कूल पहुँची. बच्ची को  स्कूल के दफ्तर  मे बिठाया गया था. मैंने देखा, उसके एक गाल पे एक आँसू आके ठहरा हुआ था. मैंने अपनी उंगली से उसे धीरे से पोंछ डाला. तब बिटिया बोली," माँ! मुझे लगा तुम नही आओगी,इसलिए ये पानी पता नही कहाँ से यहाँ पे आ गया!"    मैंने उसे गले से लगा के चूम लिया.

अब इसी तसवीर की दूसरी बाज़ू याद आ रही है. उस समय हम नागपूर मे थे. बिटिया वास्तु शाश्त्र की पदव्युत्तर पढ़ाई के लिए अमरीका जाने वाली थी. मै बड़ी दुखी थी. मेरी चिड़िया के पँख निकल आए थे. वो खुले आसमाँ मे उड़ने वाली थी और मै उसे अपने पँखों मे समेटना चाह रही थी.  छुप छुप के रोया करती थी.

फिर वो दिन भी आया जिस दिन हम मुंबई के  आंतर राष्ट्रीय हवाई अड्डे पे उससे बिदा लेने खड़े थे. उस समय बिटिया को बिछोह का कोई दुःख नही था. आँखों मे भविष्य के उज्वल सपने थे. आँसूं तो मेरी आँखों से बहना चाह रहे थे. मै अपनी बिटिया से बस एक आसूँ चाह रही थी. ऐसा एक आँसूं जो मुझे आश्वस्त करता कि बिटिया को मुझ से बिछड़ने का दुःख है.  अब मुझे बरसों पहले उस के गाल पे ठहरे उस एक आँसूं की कीमत महसूस हुई. काश! उस आसूँ को मै मोती बनाके एक डिबिया मे रख पाती! कितना अनमोल तोहफा था वो एक माँ के लिए!   जब बिटिया कुछ साल बाद ब्याह करके फिर अमरीका चली गयी तब भी मै उसी एक आँसूं के लिए तरसती रही,लेकिन वो मेरे नसीब न हुआ!  

34 टिप्‍पणियां:

kavita verma ने कहा…

ye dil kya kya chah leta hai..har aansun ki keemat hoti hai...bas kuchh dikh jate hai kuchh dikhate nahi hai.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दिल की बात कलम से बाहर आयी

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कोई बात नहीं दी, खुश हो जाइये कि बेटी की आंखों में आंसू नहीं खुशी है. फिर आप आंसू की कामना ही क्यों करें? कोई अपेक्षा न रखें. अपेक्षाएं तक़लीफ़ बढाती हैं.

उम्मतें ने कहा…

दिल छू लेने वाला ये वाकया आपने पहले भी बयान किया था !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bahut hee maarmik prasang se roo-ba-roo kara diya aapne kshama ji...

S.N SHUKLA ने कहा…

इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

vandana gupta ने कहा…

शायद ये दर्द बच्चे नही समझ सकते जब तक कि वो खुद माँ बाप नही बन जाते।

pragya ने कहा…

बिटिया को एक दिन इस बात का और उस एक आँसू की कमी का एहसास होगा.....

Deepak Saini ने कहा…

मन को छू गयी ये कहानी

mark rai ने कहा…

yahi prakriti ka niyam hai ...aur ise nayi pidhi aur maturity bhi kahte hai.....insaan bachcha hota hai tab bhawuk hota hai ya old age ka hota hai tab bhawuk hota hai...

Pratik Maheshwari ने कहा…

आंसू आज कहाँ हैं जी.. सब तरसते हैं दिल से निकलने वाले आंसुओं को..
यह पोस्ट आपकी बिटिया को ज़रूर पढ़नी चाहिए.. दिली तमन्ना है...

Asha Joglekar ने कहा…

आदमी आगे देखता है पीछे नही इसीसे हम अपने बच्चों से उम्मीद रखते हैं पर बच्चे भी आगे ही देखते हैं पीछे मुड कर हमे नही । आप खुश ही होंगी कि बेटी काबिल बन गई अपने जीवन में स्थापित हो गई ।
हमारे लिये ये खुशी भी अमोल है ।
सुंदर प्रसंग चित्रण ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

समय के साथ मूल्यों में कितना परिवर्तन आता है... विवाह के बाद विदा होती बिटिया भी सारे गाँव और मोहल्ले से विदा होने के दुःख से बिलख-बिलख कर रोती थी.. और आपकी बात पर आपकी ही एक पुरानी पोस्ट याद हो आयी!!

Atul Shrivastava ने कहा…

बेहद भावनात्‍मक चित्रण।
''... काश उन आंसुओं को मोती बनाकर डिबिया में बंद कर रख लेती''

मेरी बिटिया अभी महज पांच साल की है.... पर आपकी पोस्‍ट पढकर भविष्‍य में घटने वाले वाक्‍ये की कल्‍पना कर सिरहन पैदा हो गई....

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अपनें भावों को बहुत सुंदर तरीके से पेश किया है आपनें,सुंदर पोस्ट.

अजय कुमार ने कहा…

भावुक करने वाला संस्मरण

Suresh kumar ने कहा…

Man ko chu lene wali post.Kahani ke dono paksh bahut hi marmik hain.

रचना दीक्षित ने कहा…

बच्चों से बिछुडने का दर्द तो होता है. लेकिन एक समय के बाद उन्हें ऊंची उड़ान लेने के लिये अपने आँचल से मुक्त करना ही होगा, अन्यथा वह केवल पिंजरे के पक्षी बन जायेगे.

Geeta ने कहा…

hmm,aisa sabke hi sath hota hai, jab khud maa -baap bante hai tab hi ye peeda samajh aati h

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

नुसरत नागपुरी के शेर याद आ गये-
चश्मेबेकस के हैं खामोश इशारे आँसू
एक मजबूर के होते हैं सहारे आँसू
देखने वालों की नज़रों को भिगो देते हैं
अस्ल में होते हैं नमनाक नजारे आँसू.

पत्थर का मोल जौहरी और आँसू का मोल माँ-बाप ही जानते हैं.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बचपन को सहारा
यौवन को आकाश....

भावनाओं से लबरेज अभिव्यक्ति...
सादर...

निर्झर'नीर ने कहा…

लुत्फ़ है कौन सी कहानी में
आपबीती सुनाएँ या जगबीती
...
आपकी आपबीती में बहुत मर्म है
आपकी बात पे एक शेर याद आता है मुझे बहुत पसंद है .
.
याद कुछ आई इस क़दर भूली हुई कहानियां
सोये हुए दिलों में दर्द जगा के रह गयी

संजय भास्‍कर ने कहा…

दिल छू लेने वाला संस्मरण.....सुन्दर प्रस्तुति

संजय भास्‍कर ने कहा…

कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

शकुन्‍तला शर्मा ने कहा…

सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

Ankur Jain ने कहा…

bhavpoorn chitran....

Maheshwari kaneri ने कहा…

दिल छू लेने वाला संस्मरण....सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सच है
पढकर आंखे डबडबा गईं

Urmi ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

Smart Indian ने कहा…

आखिर माँ का दिल जो ठहरा। आपको, परिजनों और मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

SANDEEP PANWAR ने कहा…

शुभ दीपावली,

संतोष पाण्डेय ने कहा…

गद्य में पद्य जैसी गहराई.
दीपोत्सव की शुभकामनायें.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आह!