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गुरुवार, 15 जुलाई 2010

अध्याय २)..१)छूट गया वो अंगना ...


( पिछली कड़ी: मेरा..मतलब पूजा तमन्ना का ब्याह गौरव के साथ हो गया....बेलगाम के छोटा से गाँव से निकाल मै लखनऊ पहुँच गयी...अभी  गुह प्रवेश  ही  हो  रहा  था ,की , कानों  में    अलफ़ाज़  पड़े ," ये  गौरव  भी  ना ! पता नही किसकी उतरन ले आया है...अब आगे पढ़ें...)

मै चौंक गयी... उस ओर देखा...फिर कनखियों से गौरव की तरफ देखा...समझ नही पायी की, उसने सुना या नही...दिल जोरसे धड़कने लगा...पूजा-पाठ होता रहा..लोग मिलने आते रहे...ट्रेन से तभी आए थे...नहाने का आदेश मिला...ठण्ड थी काफ़ी...मैंने आदेश मान लिया... जो कपडे मिले,समेटे और  स्नान कक्ष में घुस गयी... गीले ही स्नानकक्ष में किसी तरह साड़ी  लपेट बाहर आयी...

दिनभर लोग आते रहे, और शाम जल्दी में तैयार हो स्वागत समारोह के लिए मुझे ले जाया गया...भीड़ उमड़ पडी थी..मेहमानों में विलक्षण उत्सुकता थी...मुझे देखने की..

रात जब  घर पहुँचे तो पड़ोस के घरके एक कमरेमे सोने का इंतज़ाम था...( ये बता दूँ,की, इन सब बातों के चलते गौरव का तबादला बेलगामसे दिल्ली में हो गया था, उसी विभाग में जहाँ किशोर था..).
मैंने बात करने की कोशिश की...लेकिन गौरव ने तकरीबन मुझे धर दबोचा... धीरे, धीरे महसूस होने लगा की, उसकी मानसिकता किशोर से अलग नही थी...

सुबह हमें लखनऊ से दिल्ली लौटना था...दिल्ली घरवाले भी साथ चले...दो ही कमरों का घर था..मै डरी-डरी-सी थी..अपने आपको बेहद अकेला महसूस कर रही थी...फिर एकबार लगा, ज़िंदगी कहाँ ले चली? अपना नैहर याद आ रहा था...और गौरव ने मुझे कह डाला," मेरी माँ तथा घरवालों का एहसान मानो की, तुम्हें स्वीकार किया...वरना क्या करती तुम?"

सुनके मै दंग रह गयी...गौरव ऐसा तो नही लगा था...लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी...जो सच था वो सामने आ गया था...जीवन का एक नया और डरावना अध्याय शुरू हो रहा था...सब कुछ बर्दाश्त करने के अलावा चारा  नही था..यहाँ आँसूं पोछने वाला कोई नही था...समझमे आ गया ...झलक मिल गयी की, इन राहों में बेहद ख़तरा था...दर्द था...

क्रमश:

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

'बिखरे सितारे' 8 ) मील का पत्थर!



ज़िंदगी में मोड़ किसको कहते हैं,ये नन्हीं तमन्ना कहाँ जानती थी...वो तो मोड़ पीछे छूट गए, तब उसे महसूस हुआ,कि, हाँ एक दोराहा पार हो गया..उसे ख़बर तक नही हुई...

एक झलक दिखाती हूँ, दादा पोती के नातेकी...ये क़िस्सा पूजासे कई बार सुन चुकी हूँ..पर हरबार सुननेको जी चाहता है..

जैसा,कि, मैंने लिखा था, सायकल चलाना, दादा ने ही पूजा को सिखाया..शुरू में तो चढ़ना उतरना नही आता...तो दादा साथ,साथ दौड़ा करते..एक दिन, सामने खड़ा ट्रक दिख गया,और पूजा उतरना सीख गयी...!

खेतों से गुज़रती पगडंडियों पे खूब सायकल चलाती रहती...ऐसे ही एक शाम की बात सुनाऊँ.....
तमन्ना, तेजीसे सायकल चलाती, खेत में बने रास्तेपे गुज़र रही थी...सामने से दादा दादी घूमने निकले नज़र आए .....दादा उसके सामने आके खड़े हो गए और मज़ाकिया लह्जेमे बोले,
" ये क्या तुम्हारे बाप का रास्ता है?"

पूजा, सायकल पे से उतर के हँसते,हँसते बोली,
" हाँ,ये मेरे बाप रास्ता है...बाप के बाप का भी है,लेकिन ठेंगा! आपके बाप का तो नही है!"

दादा-दादी खुले दिल से हँसते हुए, बाज़ू पे हो गए!

ऐसे हँसते खेलते दिन भी हुआ करते...जो अधिक थे...बस,एक माँ का दर्द उसे सालता रहता...!
पूजा की माँ के लिए कहूँगी...
'ना सखी ना सहेली,
चली कौन दिशा,
यूँ अकेली अकेली...'

नैहर के रौनक़ वाले माहौल से यहाँ पहुँच , मासूमा, वो नैहर की सखियाँ,वो गलियाँ, वो रौनक़.....याद बहुत करती...पर अपने बच्चों में पूरी तरह मन लगाये रखती...

उम्र के १३ साल पार करते करते, पूजा का एक भयानक हादसा हो गया..वो ९ वि क्लास में जा चुकी थी...अस्पताल में महीनों गुजरने पड़े... मेंदू के 'सेरेब्रल' पे चोट आ गयी थी...माँ उसे, पाठ्यक्रम की किताबें, अस्पताल में पढ़के सुनाया करती...सालाना परीक्षामे वो अपने क्लास में पहले क्रमांक से पास हो गई..

सीधे अस्पतालसे निकल परीक्षा हॉल में उसे पहुँचाया गया..उसे तो दोबारा चलना सीखना पड़ा था..गणित एक ऐसा विषय था, जो पढ़के नही सुनाया जा सकता..और वहीँ उसे केवल ४० अंक मिले.....आत्म विश्वाश खो बैठी...ये एक उसके जीवन में बड़ा अहम मील का पत्थर साबित हुआ...

उस ज़माने में, अब जैसे PCB या PCM का ऑप्शन होता है,तब नही था..पूजा बेहतरीन डॉक्टर बन सकती थी..ये कई जानकारों ने उसे बताया..सिर्फ़ डॉक्टर नही,उसके हाथों में एक शल्य चिकित्चक की शफ़ा थी.. पर उसने 'fine arts' में दाखिला ले लिया...उसकी आगे की जीवनी जब देखती हूँ,तो लगता है,पहला निर्णायक मोड़ तो यहीँ आ गया..

अपने गाँव से निकल वो पहली बार, बडोदा शहर आयी...ये विषय तब उसी शहरमे पढाया जाता था...सोलवाँ साल लग गया था..पूजा तीक्ष्ण बुद्धी और मेहनती थी...कलाके कई आयाम वो अपने आपसे ही पार कर लेती...अपने गुरुजनों की लाडली शागिर्द बनी रही...

अब केवल साल में दो बार उसका अपने घर आना बन पाता..दादा, दादी,माँ, उसे शिद्दत के साथ याद आते और उतनी ही शिद्दत के साथ पूजा भी अपना घर याद करती...अन्य लड़कियाँ छात्रावास के मज़े उठाती..लेकिन पूजा कुछ अलग ही मिट्टी की बनी थी...संग सहेलियों के जाती आती..लेकिन इस तरह की आज़ादी से वो कभी बहक नही गयी...

परिवार में अबतक,एक बहन के अलावा, एक भाई भी आ चुका था...जो पूजासे ८ साल छोटा था...

छुट्टीयाँ ,भाई बहनों के झगडे..पुरानी सखी सहेलियों से मेल जोल, इन सब में बीत जातीं..जब वो छूट्टी में आती तो,मानो एक जश्न -सा मन जाता...

एक ऐसी ही छुट्टी में उसके लिए एक पैगाम आया..पैगाम तो उसे उम्र की १४/१५ साल से आते रहे...पर कुछ निर्णय क्षमता तो नही थी...बचपना था...मंगनी होगी तो, घर मेहमान आयेंगे, खूब रौनक़ होगी...एक बुआ जो बड़े सालों बाद ऑस्ट्रेलिया से भारत आयी थी,और पूजा उसे बहद प्यार करती....

बस वो बुआ घर आयें,इस बचकानी हरकत में पूजाने मंगनी के लिए हाँ कर दी थी...उम्र ही क्या थी..१७ पूरे! खूब रौनक़ हुई...ये अल्हड़ता ,मासूमियत नही तो और क्या था?

पूजा को कभी भी अपने रूप का ना एहसास रहा ना, कोई दंभ...बल्कि,जब कोई सखी सहेली उसे सुंदर कहती,तो वो अपने आपको आईने में निहारती..क्या पाती..?एक छरहरे जिस्मकी, लडकी...गुलाबी गोरा रंग, बड़ी, बड़ी आँखें..लम्बी गर्दन...

लड़कियाँ उसे कहती,' तुम्हारे दांत तो नकली लगते हैं...! असली जीवन में होते हैं ऐसे दांत किसी के...पूजा को कई बार न्यून गंड का भाव भर आता...जब ये सब बातें सुनती...ईर्षा वश भी ऐसा कुछ कहा जा सकता था, उसे कभी समझा ही नही.....

मेहमानों के आगे वो छुपी,छुपी-सी रहती....

दूसरी ओर,जब उसके क़रीबी दोस्त रिश्तेदार आस पास होते,तो नकलची बन,या अपनी शरारतों से खूब हँसाती भी रहती...

जब कभी कोंलेज या स्कूल के ड्रामा में हिस्सा लेती,तो अपने किरदार ऐसे चुनती,जहाँ, उसकी मोटी,मोटी आखों में भरे आँसू नज़र आयें..के वो अपनी माँ या सहेलियों से पूछे..'मेरी आँखें कैसी दिखती थीं? आँसुओं से भरी हुई...?
परदेपर की नायिका कितनी सुंदर दिखती जब अपने पलकों पे आँसू तोलती...'

कहाँ पता था,कि, असली और नकली अश्रुओं में कितना फ़र्क़ होता है..जब असली आँसू बरसते हैं,तो उन्हें छुपाते रहना पड़ जाता है...मन चाहे रो रहा हो ज़रोज़ार, अधरों पे मुस्कान खिलानी पड़ती है...
शायद हर युवा लडकी अपनेआप से ऐसी बातें पूछती हो...जैसे पूजा-तमन्ना पूछती....

लड़कपन अब यौवन की दहलीज़ पे खड़ा था...! और एक हादसा हो गया...पूजा हॉस्टल में थी,तब उसे ख़बर मिली..उसका छोटा भाई, जो तब ११ /12 साल का होगा...उसके हाथ से बंदूक की गोली छूट गयी...पूरी तरह अनजानेमे....पर उस अनुगूंज का असर कहाँ ,कहाँ नही पहुँचा.......

यहाँसे पूजा की ज़िंदगी वाक़ई में एक ऐसा मोड़ ले गयी,जिसके दूर दराज़ असर हुए...एक दर्द का सफर शुरू हो गया...
क्रमश:

इसी पोस्ट में पूजाकी एक तस्वीर डाल रही हूँ...इसमे उम्र १७ साल की थी...अभी लडकपन अधिक झलकता..तो एक ओर वो बेहद संजीदा भी थी..