बुधवार, 16 जून 2010

बिखरे सितारे: गला क्यों न घोंटा?

(गतांक: केतकी,किसी अन्य शहर  अपने काम से गयी थी और मैंने उसे कुछ पूछने के ख़ातिर फोन किया. वह फोन पे मुझपे कुछ इस तरह बरस पडी,जैसे मैंने पता नही क्या कर दिया हो...! फोन को कान पे पकडे,पकडे ही,मै मूर्छित हो फर्श पे गिर गयी...घर पे सफाई करनेवाली बाई थी और मेरा एक टेलर भी..उसने घबराके मेरे भाई  को फोन कर दिया....वो आभी गया...नही जानती थी,की,क़िस्मत ने अपनी गुदडी में और कितने सदमे छुपा रखे थे...

हर हँसी  की  कीमत
अश्कोंसे चुकायी हमने,
पता नही और कितना
कर्ज़ रहा है बाक़ी,
आँसू  हैं  कि थमते नही!
अब आगे:)

मै होश में तो आ गयी उस समय,पर यह कुछ दिनों के लिए एक सिलसिला-सा बन गया. जब मानसिक तनाव बरदाश्त के परे हो जाता तो मै होश खो बैठती. माँ वैसे ही चिंतित रहती,मेरे कारण,अब और अधिक चिंतित हो गयीं.

केतकी गौरव के पास ही थी उन दिनों. एक शाम उसका फोन आया:" माँ, आप इस वक़्त अकेली हैं या आस पास कोई है?"
मै:" इस समय तो कोई नही है..कहो,क्या बात है?"
केतकी:" माँ, पापा,अमन और मै कल दिन में वहाँ पहुँच रहे हैं...."
मै:" लेकिन तुम लोग तो तीन चार दिनों के लिए ऊटी जानेवाले थे न? उसका क्या?"
केतकी:" नही जा रहे अब..पापा कहते हैं,की,अब वो आपके साथ क़तई नही निबाह सकते. वह अमन और मेरे सामने कुछ बातें कहना चाहते हैं...जैसे की,आपको प्रतिमाह क्या दिया जाय...तथा आप कहाँ रहेंगी.."

कुछ देर तो मेरे मूह से अलफ़ाज़ ही नही निकले...शायद आँखें भर आयीं थीं....गला रूंध रहा था. अंत में मैंने कहा:" ठीक है बेटे..जो तुम लोग ठीक समझो..इस समय और कह भी क्या सकती हूँ?"

कैसा तमाशा बना रखा था क़िस्मत ने मेरा! चार दिन भी चैन नही मिल रहा था..गौरव और बच्चे आए. गौरव ने काफ़ी बहकी,बहकी बातें की

उनकी मुखालिफ़त करना मैंने मौज़ूम न समझा. पत्थर पे सर फोड़ने वाली बात होती वह तो..उसने एक घर मेरे नाम से करने की बात कही. और प्रतिमाह कुछ रक़म. कितनी,यह बात मुझे अब याद नही. वो सब कुछ कागज़ात पे लिख लाया था. एक प्रत  मुझे पकड़ा दी गयी. अगले दिन वह और अमन,दोनों लौट गए. उनके वहाँ रहते मै तीन चार बार बेहोश हो कर ,पता नही क्या बडबडाती रही. अमन ने तो अपने आपको इन सब बातों से अलग थलग कर लिया था.




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इसी दौरान एक रोज़ केतकी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और कहा:" पापा अब तुम्हारे नाम मकान नही करना चाहते..उनका कहना है,की,तुम अपना संतुलन खो बैठी हो.."
यह अलफ़ाज़ मै हज़म कर ही रही थी,की,केतकी रोते हुए उठ खड़ी हुई और तमतमाती हुई बोली:" माँ! तुमने पैदा होते ही मेरा गला क्यों न घोंट दिया? आप लोगों ने मेरी ज़िंदगी नरक बना रखी है..." उस बच्ची की नन्हीं,मासूम सूरत मेरे आखों के पानी में तैर गयी...जिसे उसके परिवार ने धुतकारा था...मै ही उसकी रक्षक थी..या मेरा खुदा..लगा,काश, मेरी ही माँ ने मेरा गला घोंट दिया होता!

मै दंग रह गयी ! कभी न सोचा था की,मुझे अपनी लाडली संतान के मूह से यह अलफ़ाज़ सुनने होंगे! पल भर लगा,गर मेरे दादा-दादी कहीँ से  सुन रहे हों,तो उनपे क्या बीतेगी? जिस पूजा तमन्ना,यानी मुझे, पाके उन्हें लगा था,आसमान का सितारा मिल गया..उसी को, उनकी लाडली पोती को,उसकी औलाद यह अलफ़ाज़ सुना रही थी? यह क़िस्मत की कैसी विडम्बना थी? मै,उनकी आखों का सितारा,टूट  टूट के बिखर रही थी..और वो दोनों कुछ न कर सक रहे थे!

मैंने कमरे से बाहर निकल जाना चाह,लेकिन केतकी मानो चंडिका का रूप धारण कर चुकी थी...उसने मेरी बाँह पकड़ दोबारा कमरे में खींच लिया...उसकी आँखों में आग थी...जिसे मेरे आँसूं चाहकर  भी बुझा न पा रहे थे..

क्रमश:
इस  कड़ी  का  काफ़ी  अंश  डिलीट  कर  दिया  गया  है ..क्षमा  करें !

20 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

bahut dard bharee dastan hai. dua hai kahanee ke kirdar ka jeevan sahaj ho jae...

दिलीप ने कहा…

oh behad maarmik ant ki baat rula gayi....bachche kabhi kabhi kuch aisa keh dete hain ki nayanon se ashru barbas hi nikal padte hain...maarmik rachna

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मैं तो सारी कथा शुरू से पढ़ रहा हूँ. आज की पोस्ट बाद के लिए छोड़ रहा हूँ.

उम्मतें ने कहा…

केतकी की प्रतिक्रिया पर मैं भी हैरान हूं !
क्या इसकी वज़ह ज़ाहिर हुई आप पर ?

उम्मतें ने कहा…

केतकी की प्रतिक्रिया पर मैं भी हैरान हूं !
क्या इसकी वज़ह ज़ाहिर हुई आप पर ?

पंकज मिश्रा ने कहा…

shaandaar.
http://udbhavna.blogspot.com/

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कुछ कहना नहीं, बस पढते जाना चाहती हूं.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

क्या सच में ऐसे पति और बच्चे असल ज़िन्दगी में संभव हैं?

Smart Indian ने कहा…

केतकी का व्यवहार दुखद हो सकता है magar है स्वाभाविक ही.
जब कभी लोग बुरे वक्त से गुज़रते हैं
गैर बच जाते हैं अपने ही बुरे बनते हैं

Basanta ने कहा…

Very tragic! It's hard to read this story with out crying---

शारदा अरोरा ने कहा…

जब माँ बाप ऐसे तनावपूर्ण समय से गुजरते हैं तो बच्चों की नीँव कमजोर होती जाती है , फूलों की तरह नाजुक बच्चों का मन जिसमे माता पिता रोल मॉडल होते हैं भ्रमित हो कर टूटने लगता है । ऐसे समय में किसी भी तरह का भ्रम पनपने नहीं देना चाहिए । घटनाएँ कहें या दुर्घटनाएँ बहुत ही दुखद हैं ...मार्मिक ढंग है लेखन का ।

bhagyareema ने कहा…

Whatever happened in the past, Ketaki was now well settled, so why the agony??

gaurtalab ने कहा…

bahut achha...marmik

vandana gupta ने कहा…

ऐसे हालातों में कोई भी अपना मानसिक संतुलन खो बैठेगा………………उस पर औलाद भी सिर्फ़ एक ही पक्ष को देखे और समझे तो उस माँ के कलेजे पर क्या गुजरी होगी सिर्फ़ वो ही समझ सकती है………………इतना दर्द सहकर भी जीना और ज़िन्दगी से लडते रहना गज़ब की सहन शक्तिहै।

pragya ने कहा…

ये जीवनी तो मार्मिक ही होती जा रही है...पता ही नहीं चल रहा कि आखिर पूजा का परिवार उससे चाहता क्या है...सभी को अपनी अपनी भावनाओं की पड़ी है..कोई पूजा की ज़िन्दगी को क्यों नहीं समझ रहा?

ज्योति सिंह ने कहा…

ab to bas padhte huye naye naye mod se gujrana hai ,intha ho gayi ....

arvind ने कहा…

ye jeevani bahut hi maarmik, dardanaak our jeevant lagati hai....

सदा ने कहा…

अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी ।

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

wah wah behetarien...

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m sure u will like it !!!

गौतम राजऋषि ने कहा…

पहले अमन का तटस्थ रहना और अब अचानक से केतकी का ये रूप...पूजा की मानसिक स्थित का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है।

god, heights of tolerance...!!!