चंद वाक़यात लिखने जा रही हूँ...जो नारी जीवन के एक दुःख भरे पहलू से ताल्लुक़ रखते हैं....ख़ास कर पिछली पीढी के, भारतीय नारी जीवन से रु-ब-रु करा सकते हैं....
हमारे मुल्क में ये प्रथा तो हैही,कि, ब्याह के बाद लडकी अपने माता-पिता का घर छोड़ 'पति 'के घर या ससुराल में रहने जाती है...बचपन से उसपे संस्कार किए जाते हैं,कि, अब वही घर उसका है, उसकी अर्थी वहीँ से उठनी चाहिए..क्या 'वो घर 'उसका होता है? क़ानूनन हो भी, लेकिन भावनात्मक तौरसे, उसे ऐसा महसूस होता है? एक कोमल मानवी मन के पौधेको उसकी ज़मीन से उखाड़ किसी अन्य आँगन में लगाया जाता है...और अपेक्षा रहती है,लडकी के घर में आते ही, उसे अपने पीहर में मिले संस्कार या तौर तरीक़े भुला देने चाहियें..! ऐसा मुमकिन हो सकता है?
जो लिखने जा रही हूँ, वो असली घटना है..एक संभ्रांत परिवार में पली बढ़ी लडकी का दुखद अंत...उसे आत्महत्या करनी पडी... वो तो अपने दोनों बच्चों समेत मर जाना चाह रही थी..लेकिन एक बच्ची, जो ५ सालकी या उससे भी कुछ कम, हाथसे फिसल गयी..और जब इस महिलाने १८ वी मंज़िल से छलाँग लगा ली,तो ये 'बद नसीब' बच गयी... हाँ, उस बचने को मै, उस बच्ची का दुर्भाग्य कहूँगी....
जिस हालमे उसकी ज़िंदगी कटती रही...शायद उन हालत से पाठक भी वाबस्ता हों, तो यही कह सकते हैं..
ये सब, क्यों कैसे हुआ...अगली किश्त में..
हमारे मुल्क में ये प्रथा तो हैही,कि, ब्याह के बाद लडकी अपने माता-पिता का घर छोड़ 'पति 'के घर या ससुराल में रहने जाती है...बचपन से उसपे संस्कार किए जाते हैं,कि, अब वही घर उसका है, उसकी अर्थी वहीँ से उठनी चाहिए..क्या 'वो घर 'उसका होता है? क़ानूनन हो भी, लेकिन भावनात्मक तौरसे, उसे ऐसा महसूस होता है? एक कोमल मानवी मन के पौधेको उसकी ज़मीन से उखाड़ किसी अन्य आँगन में लगाया जाता है...और अपेक्षा रहती है,लडकी के घर में आते ही, उसे अपने पीहर में मिले संस्कार या तौर तरीक़े भुला देने चाहियें..! ऐसा मुमकिन हो सकता है?
जो लिखने जा रही हूँ, वो असली घटना है..एक संभ्रांत परिवार में पली बढ़ी लडकी का दुखद अंत...उसे आत्महत्या करनी पडी... वो तो अपने दोनों बच्चों समेत मर जाना चाह रही थी..लेकिन एक बच्ची, जो ५ सालकी या उससे भी कुछ कम, हाथसे फिसल गयी..और जब इस महिलाने १८ वी मंज़िल से छलाँग लगा ली,तो ये 'बद नसीब' बच गयी... हाँ, उस बचने को मै, उस बच्ची का दुर्भाग्य कहूँगी....
जिस हालमे उसकी ज़िंदगी कटती रही...शायद उन हालत से पाठक भी वाबस्ता हों, तो यही कह सकते हैं..
ये सब, क्यों कैसे हुआ...अगली किश्त में..
15 टिप्पणियां:
बहुत मर्मस्पर्शी...अगली कड़ी का इंतज़ार..
इस दुखद घटना... की अगली किश्त में.
जी बताईये
intjaari rahegi agli kisht kee ..aur samaj krr is mansikta par behad shok jiske rehte aisee majbori paida huvi kee Mahila ko aatnhatya karni padhi
हिंदुस्तानी नारी की यही कहानी क्यों बनती है हर बार...
ना जाने क्यों..हमारा समाज आज के जमाने में भी स्त्री को सन्मान से जीने नहीं दे रहा!...बहुत दु:खद घटना!...आगे की कहानी अवश्य जानना चाहूंगी!
बहुत दु:खद घटना|
प्रतीक्षा...
बहुत लंबे समय बात आपके यह श्रृंखला.. मालिका शुरू हो रही है!! खुद को तैयार कर रहा हूँ!!
दुखद घटना मन को ठेस पहुंचाती है
अगली कड़ी का इंतजार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा जी.
आपको नववर्ष की शुभकामनाएं...आपकी लेखनी से जो दर्द निकलता है वो सीधे असर करती है इस लिए कई बार आकर पढकर टिप्पणी नहीं कर पाता......जाने क्यू .....पर इस बार की पीढ़ी के पास पहले के मुकाबले सहूलियत ज्यादा है..पर बीता दर्द रखना जरुरी है क्योंकि वही लड़ने की प्रेरणा देता है
आज भी नारी का न तो भाग्य बदला ओर
न ही गुप्त जी की पंक्तियाँ।
बहुत अफ़सोसनाक वाकया है ! कितनी मजबूर रही होगी वो ! इसका अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि एक मां अपने बच्चे के साथ खुदकुशी की कोशिश करे !
अगली कड़ी इंतज़ार रहेगा !
दुखद घटना।
दुखद.....
अगली कडी के इंतजार में..............
दुखद..
कुछ वयस्तता के कारणवश पहले आ नहीं पाया !
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