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सोमवार, 9 अगस्त 2010

बिखरे सितारे: ६: और भी सिलसिले...


( गतांक:केतकी ने अंत में इस बात की इत्तेला मेरे जेठ जेठानी को दी..उनको गौरव ने नही बताया था..सगे भाई जो नही थे..लेकिन जेठानी ने गौरव को तुरंत फोन किया..और कह दिया:' तुम गर हमारी बहू को घर से निकालोगे,तो,मेरा मरा मूह देखोगे..हम दोनों को उसके चरित्र पे किंचित भी शंका आ नहीं सकती.."
यह बात सुन,गौरव ना जाने क्यों सकपका गया..और उसने उन्हें कहा," ठीक है भाभी,आपकी बात रख  लेता हूँ.."
इस के पश्च्यात वो दोनों मेरे पास पहुँच गए...अब आगे पढ़ें...)

भाभी-भैया आ गए. मुझे अच्छा भी बहुत लगा,की,वो दोनों आए तो..मेरे साथ तो खड़े रहे. लेकिन मेरे समझ से परे था,की,गौरव ने उनकी बात कैसे रख ली?

माँ को भी इसी बात का अचरज था. और माँ ने जो अंदाज़ लगाया,वो भी एकदम सही था. मुझे छोड़ देना गौरव के अहम को ठेस थी. इसके अलावा वह यह भी जताना चाह रहा था,की, पत्नी ने किये छल के बावजूद उसने,बड़ा दिल कर के माफ़ कर दिया..और कोई होता,तो घर से धक्के मार के निकाल देता..भविष्य में मैंने यह अलफ़ाज़ गौरव  के मुख से अनगिनत बार सुने.गर मेरे पास एक भी पर्याय मौजूद होता,तो शायद मै स्वयं उस घर में नही ठहरती. यही हमारे समाज की विडम्बना है.खैर!
भाभी-भैया कुछ रोज़ रुक के लौट गए.

माँ के मन से भी अविश्वास धुंद हट गयी. भाई ने भी इतना तो कह दिया: मै बाजी  के चरित्र पर शक कर ही नही सकता. और यह भी सच है,की, उन्हों ने जीजा जी से इजाजात भी माँगी होती,तो वो कौन देनेवाले थे!"
काश! मेरी बहन का भी यही रवैय्या रहता!
इस घटना के कुछ ही दिन पूर्व,मुझे एक सहेली ने दो चित्र नेट पे फॉरवर्ड किये थे. माँ पास ही खड़ी थीं. मैंने उन्हें पहला चित्र दिखाया और पूछा: आपको क्या नज़र आ रहा है इस चित्र में?"
माँ:" किसी बगीचे में एक बेंच है. उसपे एक लड़का, किसी सुनहरी बालवाली लडकी के गले में हाथ डाले बैठा है".
मै: " अच्छा! यह तो जो पीछे से दिख रहा है,वो है....अब इसी तसवीर को सामने से देखिये!"
मैंने अगली तसवीर पे क्लिक किया और माँ हँस ने लगीं! सामने से देखा तो समझे,की,वो सुनहरे बालवाली लडकी नही,बल्कि,एक कुत्ता था!
क्या ख़बर थी,की,मेरे साथ यही होगा? के तसवीर की एक ही बाज़ू देखी जायेगी?

केतकी अब मेरे पीछे पड़ गयी,की,मैंने कुछ ना कुछ अपना काम शुरू करना ही चाहिए. चाहत मेरी भी यही थी. लेकिन हम चाहें,और तुरंत वैसा हो जाये....जीवन में ऐसा तो होता नही. मैंने अपने दिमाग के दरवाज़े पूरी तरह खोल दिए.

केतकी वैसे बेहद चिड चिडी हो गयी थी. बात बात पे उलझ पड़ती. इतनी,की,मेरी माँ,जो उसे अपनी जान से बढ़ के प्यार करतीं,उनसे भी वह कई बार बड़ी बदतमीज़ी से पेश आती. माँ और मै,दोनों ही उसकी इस मानसिक अवस्था को समझ रहे थे. बरसों उस पे ना इंसाफी हुई थी. मुझ पे भी हुई थी,जिसकी वह गवाह थी. और जैसे भी हो,उसने मेरा साथ निभाया था. अवि के समय भी वह और उसका पति,दोनों मेरे साथ खड़े रहे. वरना मै ज़लालत से ही मर जाती.
चंद दिनों बाद केतकी लौट गयी.

फिल्म मेकिंग के दौरान चंद लोगों से परिचय हुआ. बड़ा मन करता की,समाज की ज्वलंत समस्याओं पे छोटी,छोटी फ़िल्में बनाऊं . आर्थिक हालत तो ऐसी न थी,की,बना सकूँ. तलाश में थी की,कोई producer या distributer मिले.

मै भी एक कोष में चली गयी थी. अपने आप से सवाल करती,क्या सच में मुझे,इतनी सहजता से,अपना मन पसंद काम मिल गया है? शायद कोई आंतरिक  शक्ती होती है,जो हमें आगाह कराती है.लेकिन किस बात से मैंने आगाह होना था? हर क़दम फूँक  फूँक के उठा रही थी...!

केतकी दोबारा आनेवाली थी. उसे कुछ अपने काम के लिहाज़ से assignments मिले थे. वह पहले गौरव के पास पहुँची. बाद में मेरे पास. उसका मिज़ाज कुछ और अधिक चिडचिडा महसूस हुआ मुझे....

किसी अन्य शहर वो अपने काम से गयी थी और मैंने उसे कुछ पूछने के ख़ातिर फोन किया. वह फोन पे मुझपे कुछ इस तरह बरस पडी,जैसे मैंने पता नही क्या कर दिया हो...! फोन को कान पे पकडे,पकडे ही,मै मूर्छित हो फर्श पे गिर गयी...घर पे सफाई करनेवाली बाई थी और मेरा एक टेलर भी..उसने घबराके मेरे भाई  को फोन कर दिया....वो आभी गया...नही जानती थी,की,क़िस्मत ने अपनी गुदडी में और कितने सदमे छुपा रखे थे...

हर हँसी  की  कीमत
अश्कोंसे चुकायी हमने,
पता नही और कितना
कर्ज़ रहा है बाक़ी,
आँसू  हैं  कि थमते नही!

क्रमश:

कड़ी का काफ़ी अंश डिलीट कर दिया है. क्षमा करें !

शनिवार, 7 अगस्त 2010

बिखरे सितारे भाग ३:क्या करूँ?क्या करूँ?


( गतांक:शाम के साढ़े चार पाँच बजे के करीब दरवाज़े पे बज रही घंटी से मेरी आँख खुली...कमरे से बाहर निकलते ही मैंने ड्राइवर को आवाज़ दी..वह भी सो गया था...जब तक आया तब तक मैंने दरवाज़ा खोल दिया..और अपने सामने खड़े लोगों को देख हैरान रह गयी...! लोग क्या, अब जब सोचती हूँ,तो एक भयानक तूफ़ान मेरे द्वार पे खडा था...मेरा द्वार? मेरा अपना कोई द्वार या घर था?
अब आगे...)

दरवाज़ा खोला तो दंग रह गयी..सामने खड़े थे,गौरव तथा मेरे भाई   और बहन...! कुछ आकलन हो उससे पहले और कुछ लोग अन्दर आए..कुछ गौरव के सह्कर्मी,कुछ हम लोगों के दोस्त, कुछ पुलिस विभाग के लोग...बातों और घटनाओं का सिलसिला, सही क्रम से तो याद नही...कोई कुछ कह रहा था..कोई कुछ कर रहा था..मेरी संवेदनाएँ,मानो नष्ट हुए जा रहीं थीं..

गौरव :" मै तुम दोनों को अनैतिक संबंधों के तहत गिरफ्तार  करवा दूँगा...(अवि की ओर मुड़ के)गर मेरे पास बंदूक होती तो मैंने इस पे गोली दाग दी होती..."
बमुश्किल मेरा मूह खुला:" गोली दागनी हो तो मुझ पे दाग दो..यह लड़का बिना इजाज़त के अन्दर नही आया है.."
किसी ने अवी से उसके कागज़ात छीन लिए...मैंने गौरव को अपने मोबाइल से उसकी तस्वीरें लेते देखा..
पता नही किस वक़्त मै अपने भाई बहन के साथ कमरे में गयी...चिल्लाने की आवाज़ सुनी तो बाहर निकली..देखा एक व्यक्ती अवि को चाटें मार रहा था..मैंने टोकने की कोशिश की...उनमे से एक अवि को बाहर ले गया..बाद में पता चला,उसे ट्रेन में बिठा दिया गया..

गौरव कमरेमे आया...कुछ फूल मेरे जुड़े से निकल सिरहाने पड़े थे...
गौरव: " देखा..दुल्हन की तरह सज के बैठी थी...और यह sms देखो..every time you  see this sms , consider that you are being hugged a thousand times .."
मैंने कहना चाहा की,वह sms उन्हीं की भांजी का है..महिला दिवस के दिन भेजा हुआ..वो मुझे अपनी माँ की जगह देती रही है...पता नही,मुह से अल्फाज़ निकले या नही..
फिर गौरव ने एक डायरी  उठायी,जिसे वो किताब समझ रहा था...उस पे लिखा हुआ था,"Love,live & laugh"...
गौरव :" इसी  में  से  यह  औरत  एक  दिन  किसी  को  फोन  पे  पढ़  के  सुना  रही  थी ...बेहयाई  की  इन्तेहा  है .."

वह डायरी मुझे मेरे भांजे ने दी थी...उसमे स्त्री भ्रूण ह्त्या को लेके मैंने एक कविता लिखी थी...मैंने कईयों को सुनाई थी...किसे कहती? किसे समझाती? कौन सुनने वाला था उस वक़्त? शायद मै अपनी वाचा भी खो बैठी थी...
गौरव की कमरे के बाहर से आवाज़ आयी:" मै जा रहा हूँ..." फिर तुरंत मेरी बहन और भाई को मुखातिब होके बोला" तुम लोग भी जाओ..रहने दो इसे रंगरलियाँ  मनाने के लिए अकेली!"
खैर वो दोनों तो रुके रहे...गौरव चला गया...दिमाग में इतना दर्ज हो रहा था,की,बहन-भाई,दोनों पूरी तरह ,गौरव के बहकावे में आ गए हैं...दोनों को मेरे बर्ताव पे शर्मिन्दगी महसूस हो रही है...वो रात भी गुज़र गयी...मुझे अपने लिए कोई और ठिकाना ढूंढना होगा,यह बात मुझे कही गयी..

अगले दिन माँ भी पहुँच गयीं...डॉक्टर के आने का वो दिन नही था,पर वो भी पहुँच गए...
डॉक्टर:" तुम्हारे पती को अवि के बारे में ख़बर किसने दी?"
मै खामोश रही...मन में आया, शायद जो गोल्फ सेट लेने आया था उसने दी होगी...डॉक्टर चले गए...मै फिर एक कटघरे में खड़ी रह गयी...माँ,बहन,भाई...सब मेरी तफ्तीश में जुड़  गए...सवालों की बौछार...इन्हीं बातों के चलते मुझे बताया गया की,वह ड्रायवर,जो मेरे नैहर से आया था, अपने गाँव भाग निकला..गौरव से बहुत डर गया था..

देर रात केतकी का फोन,मेरी बहन के मोबाईल पे आया....उसने पूछा:" माँ,क्या हालचाल हैं?"
मै:" सब ठीक है, बेटे..."
केतकी:" मैंने सुना,कल बड़ा हंगामा हुआ...!"
मै :' ओह..! तो तुझे किसने बताया?"
केतकी:" मुझे पता चल गया..."
अब मै रो पडी...हे भगवान् ! इसका मतलब बात मेरे बेटी-दामाद तक पहुँचा दी गयी? क्या करूँ? क्या करूँ?
केतकी:" रो मत माँ...! हम दोनों आपके साथ हैं...उस लड़के का क्या हुआ..?"
मै :" उसकी पिटाई हुई..."..मुझे बीच ही में टोक के केतकी ने कहा:" क्या? क्या कह रही हो? उसे पीटा..?"
उसकी आवाज़ में हैरत के सिवा अब बेहद गुस्सा भी था...वो अमरीका से अगले हफ्ते भारत आनेवाली थी..

जब पहुँची,तो सारी कहानी की कुछ कड़ियाँ जुड़ने लगीं...जब गौरव ने मुझ से मोबाइल छीना था,तब मुझे आए हुए सब sms बहुतों को फॉरवर्ड किये थे...उसने मुझ से कहा था की,वह मेरे सेट में उपलब्ध सुविधाएँ देख रहा है....मेरी बहन और केतकी की फोन पे बात चीत भी हुई थी..बहन ने केतकी से कहा था" खबरदार,जो तूने माँ का साथ दिया..वह धोकेबाज़ है..."
जिस ड्रायवर को मैंने काम से हटा दिया था...अब समझ में आने लगा...मेरे मोबाइल का उसने बेहद गलत इस्तेमाल किया था...जूली का झूट भी इसमें शामिल था....
सब से भयानक बात जो सामने आयी वो यह थी...मेरे डॉक्टर ने मुझे ज़बरदस्त धोखा दिया था....एक डॉक्टर की शपथ को कूड़े में फेंक दिया था...क्यों? क्यों किया उसने ऐसा? एक जासूस का किरदार निभाते हुए, उसने हर तरह की झूटी बातें हर किसी से कहीँ थीं..यह कैसा विश्वास घात था...?जो पूरे एक साल से चल रहा था...
क्रमश:

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

बिखरे सितारे: भाग ३: दिया और तूफ़ान..


( गतांक:इस प्रसंग से तो मै किसी तरह उभरी..मेरे भाई और बहनोई,दोनों ही ने गौरव को काफ़ी समझाया..इतने सालों में पहली बार,मेरे भाई  ने अपना मूह खोला था..मुझे अपने घर और जीवन से रफा दफा करने की बात उस समय तो गौरव ने नही दोहराई....क्या ख़बर थी,की,एक और,इससे कहीँ अधिक  भयानक प्रसंग मेरे इंतज़ार में था..?? अब आगे..)

कभी मुड़ के देखती हूँ, तो सोचती हूँ, अपने वैवाहिक जीवन को गर चंद पंक्तियों में बयाँ करना चाहूँ,तो कैसे करूँ? बहुत सरल है..गधे पे बैठे तो क्यों बैठे...उतरे तो क्यों उतरे..! अपना आत्मविश्वास कबका खो बैठी  थी...सही गलत के फैसले,मै केवल अपने बलपे नही ले पाती थी..मुझे हर घटना को गौरव की निगाहों से देखना पड़ता..और उसमे सफल होना मुमकिन नही था...उसे किस वक़्त कौनसी बात अखरेगी यह शायद वह खुद भी नही बता सकता तो औरों की क्या कहूँ?

कभी फोन करके सलाह लेना चाहती तो वो कह देता, इतनी-सी बात के लिए तुम मेरा समय क्यों बरबाद करती हो? जो बात मुझे बहुत मामूली लगती और मै तय कर लेती तो मुझे सुनना पड़ता, मेरी सलाह लेना तुम्हें ज़रूरी नही लगा? इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे ख़बर ही नही?

फोनवाली घटना को हुए चंद माह गुज़रे..उस घटना के सदमे से, मेरे एक हफ्ते के भीतर नब्बे प्रतिशत बाल झड गए थे. उसकी ट्रीटमेंट के लिए मैंने एक क्लिनिक में जाना शुरू किया था..वहाँ के सभी स्टाफ के साथ मै बहुत घुलमिल गयी थी.

ट्रीटमेंट के दौरान वहाँ की डॉक्टर ने मुझे बताया:" आप यहाँ बहुत popular हो गयीं हैं ! आपके लिए एक surprise  तोहफा है!"

शहर के एक मशहूर beauty पार्लर का गिफ्ट voucher था यह...! मै कभी पार्लर तो जाती नही थी..लेकिन सोचा,किसी दिन चल के सलाह लूँ की, बचे हुए केशों की रचना कैसे की जाये! मुझे हमेशा जूड़ा बनाने की आदत थी..!लेकिन उसका मुहूरत निकल नही पा रहा था.


एक सड़क दुर्घटना के कारण मुझे अचानक अस्पताल में भरती होना पड़ गया..इत्तेफाक़न, मेरा भाई शहर में मौजूद था..साथ हो लिया. एक शल्य  चिकित्चा के  बाद    मुझे चौबीस घंटे ICU में रखा गया..उसने किसी तरह एक प्राइवेट  नर्स का इंतज़ाम किया..रात तो गुज़र गयी...सुबह होने पर, चाय-नाश्ते के बहाने  जो खिसक गयी तो देर शामतक उसका पता ही नही चला..खैर! मुझे प्राइवेट वार्ड में ले जाने से पहले x-ray के लिए ले जाया गया..वहाँ से कमरे में..

मेरा भाई रातभर मेरे कमरे में रुका रहा..सुबह कमरे को ताला लगा के उसने चाभी काउंटर पे पकड़ा दी..जब मुझे कमरे के सामने लाया गया तो कमरा खुला था! अन्दर प्रवेश करते ही देखा की, वह नर्स और मेरा ड्राइवर सोफे पे विराजमान थे और मेरे मोबाइल फोन के साथ कुछ छेड़छाड़ चली थी..मुझे देखते ही सकपका के ड्राइवर ने फोन मेरी साथ वाली टेबल पे रख दिया..उस वक़्त किसी को कुछ कहने की शक्ती मुझ में नही थी. वैसे भी मुझे इस बात का गुस्सा अधिक था,की, यह दोनों पूरा दिन मेरे पास फटके ही नही..

अगले दिन गौरव कुछ देर के लिए आके लौट गया..मुझे अस्पताल में हफ्ता भर रहना पडा. घर लौटी..कमजोरी महसूस हो रही थी..हर थोड़ी देरसे मुझे लेट जाना पड़ता..खैर! कुछ डेढ़  माह के बाद एक शादी में शरीक होने मुझे गौरव के पास जाना था.

 जाने से दो तीन दिन पूर्व मैंने अपना नेटपे डाला हुआ प्रोफाइल खोला..इरादा था,की,गर कुछ बेहुदे कमेंट्स आए हों तो उन्हें डिलीट कर दूं...देखा तो एक कमेन्ट था," आप कहाँ हैं मोह्तरेमा?"
नाम और तसवीर तो थी,पर मुझे कुछ याद नही आ रहा था..मैंने उस व्यक्ती का प्रोफाइल खोला...वहाँ उसका परिचय था..अभिनय का शौक़ीन ..फ़िल्मी दुनिया में पैर ज़माने की कोशिश चल रही थी..

जवाब में मैंने लिखा:" मै बहुत कम अपना प्रोफाइल खोलती हूँ,इसलिए देर से जवाब दे रही हूँ..अगले माह मै स्वयं एक फिल्म making का  course करने जा रही हूँ..देखती हूँ क्या हश्र होता है!"( इस course के बारे में मैंने गौरव से संमती ले ली थी).

वो on लाइन था..उसका तुरंत जवाब आया:" अरे वाह! एक बात और..मैंने आपका कथा संग्रह पढ़ा! आप visualise बहुत अच्छा करती हैं..एक के बाद एक तसवीर खींची जाती है! मुझे तो आपसे प्रत्यक्ष भेंट करने का मन कर रहा है! मुझे यक़ीन है,की,आप स्क्रिप्ट  writing और स्क्रीन प्ले बहुत अच्छा लिख सकेंगी ! मै खुद एक भोजपुरी फिल्म के साथ जुड़ा हूँ,और स्क्रिप्ट writer खोजने का काम मुझे सौंपा गया है! "


मेरे प्रोफाइल पर से मैंने अपने शहर का नाम हटा दिया था! लेकिन मेरी किताब के पिछले पन्ने  पे मेरे बारे में जानकारी थी...यह बात मुझे याद नही रही !


मैंने जवाब में लिखा:" अरे भाई! आप क्यों मुंबई आने लगे?"


उसने लिखा :" मुंबई? आप मुंबई में रहती हैं?"
मै:" हाँ..!
वो :" पर आपकी किताब के पिछले पन्नेपर तो कुछ और  लिखा हुआ है! आप  घबराईये मत!  आपका अन्य कोई पता मेरे पास नही है! बिना इजाज़त के मै आप तक नही पहुँच सकता!"

मै शर्मिन्दा ज़रूर हुई..! पर उसे स्क्रैप पे लिखने के लिए मैंने एकदम से रोक दिया! मेरे कामसे जुडी हुई इ-मेल ID उसे दी और लिखा:" मै अब यह सब डिलीट करने जा रही हूँ..अपने scrap पर से भी यह सब संवाद कृपया हटा दें!"
उसी शाम,अपना नाम बताते हुए,एक sms आया.." माफ़ करें! मैंने यह नंबर आपके प्रोफाइल पर से हासिल किया..हो सकता है, कुछ अन्य लोगों ने भी लिख लिया हो! जब तक आप इजाज़त न दें,मै आपको फोन नही करूँगा."
मैंने पढ़ लिया पर उसका कोई जवाब नही दिया.  

चंद रोज़ बाद मै गौरव के पास चली गयी. जिस दिन समारोह था,उसी दिन शाम को मेरे मोबाइल पे एक sms आया. कुछ संता  बंता का घिसा पिटा जोक!

अचानक गौरव ने मेरे हाथों से मोबाइल छीन लिया..और कुर्सी पे बैठ, उसके विविध बटन दबाने लगा. मै कुछ देरके लिए बिस्तर पे लेट गयी. तक़रीबन आधे घंटे के बाद मैंने उससे पूछा:" आप क्या कर रहे हैं ?"
गौरव :" देख रहा हूँ, इसमें कौनसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं..."
मै खामोश रही.

तीन चार दिनों बाद मै पुनश्च बंगलौर लौट गयी.लौटे ही मेरे ड्राइवर ने छुट्टी की माँग की.गौरव के पास .जाने से पहले वो तक़रीबन हफ्ते भर की छुट्टे ले चुका था. वो बदतमीज़ी भी हदसे अधिक करने लगा था. मैंने उसे काम परसे हटा दिया..कई बार मुझसे बिना कहे, गाडी लेके अपने परिवार के कामों के ख़ातिर निकल जाया करता..बरदाश्त की भी एक सीमा होती है.....उसके पश्च्यात जब मैंने गाडी में पेट्रोल भरा तो पता चला की,वो हर बार मुझ से ३०० रुपये अधिक लेता रहा..यह सब सुन के भी,उसे हटाने पर गौरव बहुत नाराज़ हो गया..मेरी समझ में न आया,की,आखिर ऐसी भी क्या बात है जो मुझे ही दोष दिया जा रहा है..?

एक हफ्ते के पश्च्यात मुझे पास ही के एक शहर में,रोटरी द्वारा, महिला दिवस के आयोजन में शामिल होने का न्योता था.  प्रमुख अतिथी के हैसियत से मुझे 'भाषण' देनेके लिए कहा गया था,पर मैंने इनकार करते हुए सवाल जवाब के ज़रिये, एक संवाद स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की. वहाँ जाने के लिए तो मैंने एक ड्राइवर का इंतज़ाम कर दिया..माँ से बात हुई,तो उन्हों ने गाँव से एक ड्राइवर भेजने की बात कही. यह लड़का हमारे खेतों पढ़ी पला बढ़ा था..

अपने मनोवैज्ञानिक को मै हर बात बता दिया करती थी. यह भी बता दी. महिला दिवस का आयोजन बढ़िया रहा. स्थानिक अखबारों ने आयोजन को सचित्र सराहा. किसीने वहाँ से चलते समय एक अखबार मुझे थमा दिया.
मै बहुत जल्दी में लौट आयी. अमन का अगले दिन जन्मदिन था. उसका एक मित्र बंगलौर से वहाँ जानेवाला था. अमन ने मेरे हाथों बने केक तथा पेस्ट्रीज की माँग की थी..मैंने सहर्ष स्वीकार कर ली थी...घर पहुँच पूरी रात मै उस काम में जुटी रही..थोड़ा अधिक बन गया था..मैंने फ्रिज में रख दिया.

अगले दिन गौरव से पूछा:" कैसा लगा केक?"
गौरव:" मेरे लिए बचा ही नही.."
मै" कमाल है! आपने अपने लाल को झाड़ा नही? एक टुकडा बचा के नही रख सकता था!"
गौरव:" खैर..मै इन बातों को कोई तूल नही देना चाहता..हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है...!"

बाद में मै मनही मन ख़ुश हुए की, केक और पेस्ट्रीज बचे हैं. गर अगले तीन या चार दिनों में गौरव आया,तो उसे खिला सकती हूँ!
शाम को उस प्रोफाइल वाले  लड़के की ओर से एक और sms मुझे मिला. वो किसी काम से बंगलौर आनेवाला था. चाहता था,की,मै वाकई स्क्रिप्ट लिखने की ज़िम्मेदारी लूँ..उसने एक इ-मेल भेजी थी, इस मुतल्लक..और पढने की इल्तिजा की. मैंने पढ़ के अपने डॉक्टर को भी सब कुछ बताया. मन ही मन मुझे विश्वास नही हो रहा था,की, मुझे वाक़ई ऐसा मौक़ा मिल रहा है..बात निश्चित होने तक मैंने चुप्पी साध ली..

उस दरमियान गौरव भी आया. अगले दिन रात के भोजन के बाद मैंने रखे हुए व्यंजन परोसके उसे चकित करने की सोच रखी..लेकिन दोपहर के भोजन के बाद जब मै रसोई का छुटपुट काम निपटा रही थी...अचानक आके गौरव ने कहा:" मै निकल रहा हूँ.."
मै: " अरे? आप तो कल जानेवाले थे! "
गौरव:" मै अभी ही जा रहा हूँ.."
और वह निकल गया ! मै दंग रह गयी..!

अगले दिन सोमवार था..इस दिन मेरे डॉक्टर आया करते थे. रविवार की शाम मुझे अपने hair  क्लिनिक से फोन आया..:' मैडम आप कल चलिए ना पार्लर! वरना vouchar की तारीख टल जायेगी!"
मैंने हाँ कर दी..उस दिन वह लड़का भी आनेवाला था..उसे अवि करके संबोधित करते हैं...पहले तो मैंने मना कर दिया था..जब गौरव चला गया तो मैंने उसे समय दे दिया.
सुबह पार्लर से उस लडकी,प्रिया   के साथ लौटते हुए,मैंने अपने डॉक्टर को pick up कर लिया..मेरे नैहर से आया नया ड्राइवर था..उसे रास्तों की जानकारी क़तई भी नही थी.हर हाल में मुझे उसके साथ जाना ही  जाना था...वह लडकी, प्रिया मेरे साथ थी..और मेरे लिए फूलों का गजरा ले आयी थी...मैंने हँसते हुए अपने डॉक्टर से कहा, मेरे बालों से तीन गुना बड़ा यह गजरा है..!"

घर पहुँच प्रिया बैठक में बैठ गयी और मै डॉक्टर से बात चीत करने लगी..अविके बारेमे भी उन्हें बताया...यह भी बताया,की,मैंने अभी घर में किसी को बताया नही है..सब मेरा मज़ाक उड़ाने लग जायेंगे...कुछ बात बने तो कहूँ..!"

डॉक्टर चलने लगे तो मै और प्रिया उनके साथ हो लिए..अवि को रेलवे स्थानक से लाना था..वही समस्या..ड्राइवर को स्थानक पता नही था..अवि को रास्ते पता नही थे..फिर भी उसने मुझे आने से रोकना चाहा..पर समय का भी अभाव था..डॉक्टर के सामने ही मैंने उसे फोन करके बता दिया,की, मै लाल साड़ी और काला ब्लाउज पहने हुए हूँ..

स्थानक पे अवि आसानी से मिल गया..घर जाते समय बोला:" मेरा बंगलौर आना बड़ा lucky साबित हो रहा है..मुझे एक छोड़ आठ फिल्मों का ऑफर है!"
मै:" मुबारक हो!"
हमारी बिल्डिंग पे पहुँचे तो नीचे गौरव का एक सह्कर्मी खडा मिला..वह गौरव से मिलने जा रहा था..गौरव ने अपना golf किट तथा टेनिस racket   मंगवाया था...मै उसे लेके ऊपर आयी...सारा सामान पकड़ा दिया..उसके जाने के कुछ ही मिनटों में मैंने देखा,की, उसने टेनिस racket तो कुर्सी पे ही छोड़ दिया था...मैंने तुरंत उसे फोन लगाने की कोशिश की..लेकिन लगाही नही...गौरव को फोन कर मैंने बताया,की, racket यहीं रह गया..

दोपहर के दो बजने वाले थे..मैंने पिछली रात का ही रहा सहा खाना परोस दिया...जूली ने उस दिन अचानक छुट्टी माँगी थी..खैर! पिछली रात मुझे एक इंजेक्शन लेना पड़ गया था...डॉक्टर ने दवाई में भी हेरफेर किया था...मुझे बेहद नींद आने लगी..अंत में मैंने अवि से कह दिया:' मुझे कुछ देर सोना ही पडेगा.."
उसे ड्राइवर के साथ कहीँ घूमने भी नही भेज सकती थी,क्योंकि उसे रास्तेही पता नही थे ! अवि के आगे मैंने कुछ किताबें रख दी.ड्राइवर से कहा,की, फोन तथा दरवाज़े की घंटी की ओर ध्यान रखे..और अपना कमरा बंद कर सो गयी..
साढ़े चार पाँच बजे के करीब दरवाज़े पे बज रही घंटी से मेरी आँख खुली...कमरे से बाहर निकलते ही मैंने ड्राइवर को आवाज़ दी..वह भी सो गया था...जब तक आया तब तक मैंने दरवाज़ा खोल दिया..और अपने सामने खड़े लोगों को देख हैरान रह गयी...! लोग क्या, अब जब सोचती हूँ,तो एक भयानक तूफ़ान मेरे द्वार पे खडा था...मेरा द्वार? मेरा अपना कोई द्वार या घर था?
क्रमश: